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दानवीरका स्वर्गवास |
[ ८४३ इतना ही कह कर संतोष करते हैं कि वर्त्तमानमें आपके समान सज्जन, धर्मात्मा, निस्वार्थी, समाज हितैषी, परोपकारी इस समाजम न कोई था और न कोई है । आपने अपना तमाम जीवन जैन समाके हितार्थ अर्पण कर दिया था और आपके हो प्रभावसे आपका सम्पूर्ण कुल आपके समान उदार और दयालु हो गया था । आपके आश्रयसे कितने ही निर्धन धनवान हो गए और कितने ही मूर्ख विद्वान् हो गए ।
अतएव जैन समाजका कर्तव्य है कि आप जैसे महापुरुपका एक स्मारक चिन्ह बनावें, जिससे सदैव के लिए उनका नाम चिरस्मरणीय रहे और आपकी आपके उपकारियोंके प्रति भक्ति, प्रेम, वात्सल्य और कृतज्ञताका प्रकाश हो। हमें आशा है कि जैन समाज शीघ्र रुपया इकत्रित करके एक स्मारक चिन्ह बनायगी स्मारक क्या होना चाहिए इसका पीछेसे विचार किया जायगा ।
अन्तमें हम श्री सर्वज्ञ देवसे प्रार्थना करते हैं कि सेठजीकी पवित्रात्माको भव में शांति मिले और उसके द्वारा सदा जैनधर्म और जैन समाजका कल्याण होता रहे । हम स्वर्गीय सेठजीकी
पत्नी, पुत्री तथा अन्य कुटुम्बीजनोंसे विनयपूर्वक निवेदन करते हैं कि इस संसारकी असारता पर विचार करके शोकको त्याग करें और धैर्य धारण करें |
सेठजी के वियोगसे दुःखी - दयाचंद्र गोयलीय-लखनऊ । ( ' दिगम्बर जैन ' वर्ष ७ अंक ११ )
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