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दानवीरका स्वर्गवास । [८१३ घरघरके हम हो जायगे कहो कौन हमहिं जगायंगे ॥१५॥ क्या मर गये हैं सेठनी ? नहिं वे अमर भूपर भये । अदृश्य उनको देखकर ही लोग कहते मर गये ॥१६॥ महिमा उन्होंके दान पुण्यऽह शांति सरल स्वभावकी। घरघरमें गायी जा रही है उन्नतीके चावकी ॥१७॥ ये सभा बोर्डिंग आश्रम चटशाल जो हैं दिख रहे । सो सब उन्हींकी सौम्य दृष्टिसे अनहुँ लहरा रहे ॥१८॥ अब नाथ ! ऐसे नरतनके आत्माको शांति दे। अरु कर सनाथ हमहिं प्रभो ! उत्साह अरु सद्बुद्धि दे। ॥१९॥ दुःखित कुटुम्बी जनों अरु जैनोंको हे प्रभु ! धैर्य दे। दीप शांतिः दे प्रभुः ! नित शांति दे, नित शांति दे ॥२०॥
शोकासितमास्टर दीपचंदजी परवार, नरसिंहपुर (C. P.)
शेठ माणेकचंदजीना विरहनी वेदना । अरर दवरे, आ ते शु बन्युं, माणेकचंदनुं मृत्यु तो थयु; जैन कोमर्नु भूषण तो गयुं, रत्न एवं कां खरे ना रह्यु. १ हिंदनो दीवो अस्त तो थयो, तिमिर कोममां व्यापीने रह्यो। अखिल कोमनां हृदय फाटीयां, नेत्रसरीतथी अश्रु तो झर्यो. २ मेघ नृपतिए, वृष्टि तो करी, एना शबपरे मौक्तिथी खरी; स्वर्गलोकमां वास तो कर्यो, संसार त्यागीने सुखथी रह्यो. ३ तुन विरह तो, ना खमायरे, एकवार तुं दृष्टि फेंकरे, अंतः प्रार्थना, एटलीन हवे, प्रभु तेमने शांति आपजे. ४
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