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७५४ 1 अध्याय बारहवां । वहां बहुतसे पत्र लिखवाए, १ पत्र दि० जैनक्षेत्र आबूजीके प्रबन्धकर्ता बाबू पूनमचंद कासलीवालको कोटा रियासतमें भी लिखा जिसकी नक़ल आपके हस्ताक्षर सहित कमेटीकी कापी बुकमें मौजूद है। शामको भोजनके पीछे आप नियमानुसार समुद्र तटपर कुछ टहल कर लोगोंसे बातें करते रहे व रात्रिको ९॥ बजे तक श्री मगनबाईजीसे अनेक धम व जात्युन्नति सम्बन्धी वार्तालाप की। जब वह श्राविकाश्रमको रवाना होगई तब आप चैत्यालयमें गये, दर्शन करके १ घंटे तक सामायिक करते रहे । चैत्यालयसे लौट कर आप शयनालयमें आए और अपनी धर्मपत्नीसे सम्मति ली कि यह चिरंजीव बाबू (जीवनचंद ) ४ वर्षका हो गया है । इसे कुछ अक्षर ज्ञान कराना चाहिये। आज गुस्वारका शुभ दिवप्त है। कल शुक्रवार पड़ जायगा। आप रात्रिको ही करीव ११ बजे पुत्रको अक्षर पढ़ाने और लिखाने लगे, मानों उस बालकको अपने अंतिम समय पर यह शिक्षा देगए कि ज्ञानकी प्राप्तिसे ही तू अपना सच्चा हित समझना । विद्याके प्रेमीने विद्याका संस्कार अपने पुत्र में कर दिया। इतने में आपके उदर में कुछ दर्द हुआ, आप बाधा निवारणार्थ शौचको गए। लौटकर आये फिर भी शान्ति नहीं हुई। आप फिर गए लौटकर उदरमें अधिक पीड़ा होनेके कारण आप शांत चित्तसे कौच पर लेट गए और अपने भाई नवलचंदनीको बुलाकर कहा कि उदर में कुछ शूल मालूम होती है। भाईने बाहरी उपचार किया
और वैद्य बुलानेको गाड़ी भेनी । इतनेहीमें आप अहंत, सिद्ध जपते २ वैद्योंके आनेके पहले ही इस जीर्ण शरीरको छोड़कर स्वर्गधाममें पधार गए । वैद्य आया । उधर भतीना ताराचंद आया
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