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महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७२५ साथ सांगलीके महाराजसे मिले । महाराजने इमारतके लिये ज़मीन देनेका व अन्य प्रकारसे सहायता करनेका वचन दिया । वास्तवमें उद्योग इसको कहते हैं । सेठनी बम्बई आ गए। विक्रम सम्बत् १९६९ जेष्ठ मासमें सेठ माणिकचन्दनीने
शोलापुर निवासी सेठ वालचन्द हीराचन्द काश्मीरका प्रवास । दोशी, सेठ जीवराज गौतमचन्द गांधी और
सेठ जीवराज वालचन्द्र गांधीके साथ ३ मास तक काश्मीरमें भ्रमण किया। इसका विवरण बहुत कोशिस करने पर हमें नहीं मिल सका परन्तु जो बहुत ही संक्षिप्त हाल जाना गया-नीचे प्रकट करते हैं । बम्बईसे रवाना होकर आगरा पहुंचे और बोर्डिंगकी व्यवस्था ठीक कराई। यहां से दिल्ली होकर मेरठ पहुंचे और यहांकी बोर्डिगका निरीक्षण किया। यहांसे हस्तिनापुरके दर्शन करके देहरादून और मसूरी पहाड़ होकर शिमला पहुंचे
और यहां मन्दिर स्थापन के लिये प्रेरणा की और दान भी दिया। यहांसे अमृतसर पहुंचे। यहां सोनेका नानकसाई देखा। यहांसे लाहौर जाकर अपनी बोर्डिंगका निरीक्षण किया। यहांसे साम्भरलेक जाकर सैन्धवको देखा । यहांसे जम्बू और रावलपिन्ड़ी होते हुए फिटन व तांगेमें बैठकर काश्मीर पहुंचे। यहां १२ दिन ठहरे। यहां जेलम नदी, बाग, बड़ी मसजिद आदि देखे और केशरके खेत देखकर केशर खरीद की। यहांसे रावलपिन्डी, पेशावर, मुल्तान, करांची, जोधपुरमें जा कर २ या ३ दिन तक ठहरे और जोधपुरसे सीधे श्रावण मासमें बम्बई आ पहुंचे। इस भ्रमण में दो स्थानपर ग्रुप फोटो लिये गये थे जो अन्यत्र मुद्रित हैं।
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