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महती जातिसेवा तृतीय भाग । जब सेठजी ब्रह्मदेशकी यात्रा सहीसलामतीसे जहाज़ व रेल द्वारा पूर्ण करके लौट आए तब आपके भाव विलायत यात्राके भी हुए। आपकी इच्छा थी कि लंडनमें एक जैन बोर्डिङ्ग हाउस स्थापित करा दिया जाय जिससे जैनी छात्र व व्यापारी अपने धर्म व खानपान आचारकी रक्षा करते लौकिक लाभ हुए उठा सकें । यह विचार अप्रैल मास १९१२ में पक्का भी हो गया यहां तक कि ताः २८ अप्रैल १९१२ के 'प्रगति आणि जिनविजय' में यह प्रसिद्ध भी होगया कि सेट वालचंद हीराचंद व २-३ गृहस्थों के साथ सेठजी जूनके आरंभ में विलायत जानेवाले हैं । परंतु शरीरअस्वस्थता के कारण आप जा नहीं सके। विलायत जानेकी उत्कंठासे आपने कई मास पहलेसे एक माटर के द्वारा बंगलेपर इंग्रेजी पढ़ना भी शुरू कर दिया था ।
आपका यह विचार कितना पुखता था इसके प्रमाणमें पाठकोंको एक कार्डकी नकल बताई जाती है जो सेठजीने ता: ३१ मई १९९२ में बाबू सुमतिलाल बनारसको लिखा था ।
"Your kind letter of 24th instant to hand
सेठजीके विलायत जाने की इच्छा ।
and I am very glad to read it. For a long time I am intending of opening a vegetarian or Jain Boarding House at England and still having that intention, I am now thinking over its scheme and will let you know soon in the subject.
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अर्थात् - आपका २४ तारीखका पत्र पढ़कर हर्ष हुआ । मैं बहुत दिनोंसे इंग्लैंड में एक जैन बोर्डिङ्ग खोलने का इरादा कर
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