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६९४ ] अध्याय बारहवां । जीने किया उस समम आपने कहा:
___ "जैन जातिमें लोग सिंघई, सवाई सिंघई, श्रीमन्त आदिकी पदवियां पानेके लिये केवल रथयात्रा और जातिको जिमाने में लाखों रुपया खर्च किया करते थे और अब भी करते हैं । जिससे वास्तविक अज्ञानांधकारको मेटनेवाली प्रभावना नहीं हो सकती है । धन्य है जाति शिरोमाणि सेठ माणकचंदजीको कि जिसने विद्याकी वृद्धि में छह लाखके अनुमान द्रव्य खर्चकर चिरकाल के लिये ज्ञान वृद्धि का पथ स्थापित कर दिया है । ऐसे शिरोमणिका सन्मान यह जाति करनेसे असमर्थ है। इस विद्यालय के स्थापकों और पोषणकर्ताओंमें आप मुख्य हैं । इसलिये ऐसे महानुभावका चित्र विद्यालयके छात्रोंको उदाहरण बतलाने के लिये अत्यन्त आवश्यक है। सेठजीने कई वर्ष पहलेसे उपदेशकोंकी जरूरत देखकर उप
देशकीय परीक्षाका पठनक्रम व नियम ठीक सेठजीका उदाहरण करके उपदेशक भंडार महासभाके मंत्री वाबू व धर्मप्रचारका सूरजभानके सुपुर्द किया था पर उसमें कोई गाढ़ प्रेम । भी कार्य हुआ न जानकर आपने स्वयं नो
टिम निकलवाकर ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीके द्वारा वीर सं. २४३७में परीक्षा लिबाई । मध्यमामें कुंवर दिग्विजयसिंहनीने परीक्षा देकर २२) पारितोषिकके पाए। जघन्यमें हीराचंद सखाराम कोठारी आलंद और पीताम्बरदास बांसाने उत्तीर्णता प्राप्त की । प्रथमको १८) तथा द्वितीयको १०) इनामके मिले । इन तीनोंसे ही धर्मोपदेशका अच्छा उपकार हो रहा है। पीताम्बरदासजी बम्बई प्रान्तिक सभाके उपदेशक हैं और समाधानकारक कार्य कर रहे हैं । अब यह परीक्षा बंद है। यदि " पारि
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