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अध्याय बारहवां बाईयोंने अपनी पुत्रियोंके बालविवाह न करनेका नियम लिया । तथा ९) मासिक चंदा कन्याशालाके लिये हुआ था। सेठ माणिकचंदनीको मगनबाईजी पुत्रके समान थीं। जबसे
श्राविकाश्रम अहमदाबादमें खोला गया श्राविकाश्रमका तबसे बाईजीका बम्बईमें जाना क्वचिद् ही बम्बई में आना। होता था इससे सेठजीको धार्मिक कामों में
सम्मति करनेका बिलकुल मौका न मिलता था । तथा पूर्व सम्बन्ध भी कुछ ऐसा था कि मगनबाईजीके विना बम्बई निवास सेठजीको फीका लगता था तब आपने यही विचार किया कि श्राविकाश्रमको बम्बई ही में स्थापित किया जाय । एक त्रुटि अहमदावादमें यह भी थी कि द्रव्यकी मदद भी नहीं होती थी। बम्बई में परदेशी बहुत आते हैं इससे द्रव्यकी मदद भी हो सकेगी इत्यादि विचार कर सेठजीने अपने जुबली बागके बीचके बंगलेको, जिसका किराया अनुमान ८०) मासिकके आता था खाली कराया तथा कुछ कोठरियां उसके पीछे खाली कराई और निश्चय कर लिया कि वैशाख सुदी ३ वीर सं० २४३७ अक्षय तृतीयाके दिन आश्रम बम्बईमें खोला जावें। तारदेवके सेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिंगमें छात्रोंके
दर्शनार्थ एक कोठरीमें चैत्यालय था पर बम्बईमें नवीन मंदि- टूष्ट फंडमें मंदिरजीके लिये कुछ रकम निकारकी प्रतिष्ठा । लनेका नियम था इससे कुछ हज़ार रुपये
जमा होनेपर एक छोटासा मंदिरे बोर्डिंगके हातेमें बनवाया तथा उसका शिखर बनानेको सेठ गुरुमुखराय
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