________________
तसेवा तृतिय भाग।
कां अध्याय। HODHEER:जातिसेवा तृतिय भाग ।
मान् सेठ माणिकचंदजी ऐसे पुरुषों में नहीं थे कि जैसे प्रायः वे ज़मीदार लोग होते हैं जो तकियेके सहारे पड़े हुए अपना अमूल्य जीवन बिताते हैं और जिनके गावों की बंधी हुई आमदनी चली आती है, अथवा जैसे वे पेन्शन याफ्ता होते हैं जो सर्कारसे माहवारी लेकर घरमें पड़े हुए बच्चोंको खिलाया करते, चौसर सतरंज खेला करते व आलस्यमें पड़े हुए इधर उधर करवट बदला करते हैं । सेठजी एक कर्मवीर महान आत्मा थे। जिनको अपने जागनेके समयसे रात्रिके शयनके समय पर्यंत जातिहित, देशहित, जगतहितका ध्यान था। जिस दिन सेटजो सबरे कुछ न कुछ जातिसेवा सम्बन्धी विचार, खटपट व दौड़धूप नहीं कर लेते, थे तबतक उनको रोटी खाना अच्छा नहीं मालूम होता था। इस समय सेठजीकी अवस्था अनुमान ५८ वर्ष की थी। पैरमें चोट थी ही, तौभी साहस व उत्साह २५ वर्षके युवानके समान था । ठंडकमें पैर देर तक रहनेसे आपके सांधेमें दर्द हो जाया करता था तौभी कभी उसके पीछे पड़ नहीं रहते थे। अपने समयको वृथा न खोकर उपयोगमें लगाए रखना सेठजीके जीवन का मुख्य उद्देश्य था।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org