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महती जातिसेवा तृतीय भाग । खंडन करनेका किसीका हौंसला नहीं पड़ता था। १ हजार रुपयेके ऊपरकी बोलिके ७ कलश हुए जो यहां इस बात के जाननेको दिये जाते हैं कि लोगोंमें अभिषेक करनेका कितना उत्साह था । नं० कलश १-जल-सेठ विनोदीराम बालचंद झालरापाटन । ५१०१) २-दूध-सेठ ओंकारजी कस्तूरचंद ईन्दौर । ३१०२) ३-दही-सेठ नंदराम लक्ष्मणलाल पांड्या बम्बई । १५०१) ४-घृत-प्सेठ दौलतराम कुन्दनलाल बूंदीवाला ,, ११०१) ५-इक्षुरस-सेठ जीवनराम लूणकरणजी पांड्या झालरापाटन १५०१) ६-सवैषिधि-सेठ ओंकारजी कस्तुरचंद इन्दौर ३००१) ७-ईशानकोण-बाबू रामलाल पन्नालाल धर्मपुरी ११०१)
कुल ३०० कलशोंकी बोली हुई-४०१)से लेकर १०) तक २५००२) की बोली हुई। यह सर्व सेठनीके उद्योगका फल था ।
इसी दिन सभामें जब कलशोंकी बोलियां हो रही थी महारान मैसूरके कौन्सलर व डिप्टी कमिश्नर आदि सभामें पधारे । बाबू अजितप्रसादजीने इंग्रेजीमें मैसूर राज्यका धन्यवाद माना तब कौन्सलर साहबने कहा कि
" मैसूर गवर्नमेन्टको यह देखकर परम अभिमान होता हैं कि उसके प्रान्तमें जैनियों का एक ऐसा उत्कृष्ट तीर्थस्थान है जहां पर जैनी आकर अपना आत्मकल्याण और धोन्नतिका विचार करते हैं। मैसूर महाराजको जैनजाति अति प्रिय है। मैसूर सरकार यह जानती है कि यह जैन जाति दानवीर, उदार, दयामय और सहनशील है ।
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