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महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६५३ २४ व २५ आर्यिकाएं मेले में उपस्थित थीं। सेठनीको डेरेसे गाजे बाजेके साथ मंडपमें ले गए । दौर्बल्य जिनदास शास्त्रीने मंगलाचरण किया। सेठ अनन्तराजैय्याने स्वागतका भाषण कनड़ीमें पढ़ा निसका हिन्दी उल्टा बाबू जुगमन्दिरलालने सुनाया । सभामें दोनों भाषाओंमें हरएक काम होता था । हिन्दीको सिवाय इधरके ग्रामवासियोंके और सब समझते थे उनके लिये कनड़ीकी ज़रूरत होती थी। आपके भाषणमें यह कहा गया कि “ श्री बाहुबलीकी प्रतिबिम्ब बहुत प्राचीन है । राना रामचंद्र और रावणने भी इनकी पूजन की थी। चामुंडरायके पीछे मैसुरके महाराना यहांके जीर्णोद्धार करानेवाले हुए हैं । यह श्वेत सरोवर मैसुर महारानसे बनवाया गया है। " जी० के० पद्मराजैय्याके प्रस्ताव व बाबू किरोडीचंद आरा व हीराचंद नेमचंदके समर्थनसे सेठजीने श्री महावीर स्वामीकी जयध्वनिके मध्यमें प्रमुखके आसनको ग्रहण किया । और अपना भाषण हिन्दीमें पढ़ा जिसका कनड़ी उल्था वर्णी नेमीसागरजीने सुनाया। समापति नीके अंतिम वाक्य थे
“ विना स्वार्थ त्याग किये कभी जैन समाजकी उन्नति नहीं हो सकती। विद्वानोंको अपना जीवन और धनाढ्योंको लाखों रुपया विद्याप्रचारमें प्रदान करना चाहिये । खास करके जो व्यापारी बहुत समय तक व्यापार करके धन कमा चुके और अपने पुत्रोंको सामर्थ्यवान बना चुके है तथा जो सर्कारी नौकरी करके पेंशन पाते हैं उन्हें अपना शेष जीवन जैनधर्म और जैन जातिकी उन्नति तथा आत्मकल्याणमें विताना चाहिये ।"
बैठकोंमें १२ प्रस्ताव पास हुए जिनमें मुख्य ये थे:(१) मैसूर प्रांतके २००० सादर जातिके घरोंको जो
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