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महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६५१ वक्त सेठजी श्री गोम्मट स्वामी ( जैनविद्री) जानेकी तैयारी कर रहे थे क्योंकि वहां श्री बाहुबलि स्वामीकी मूर्तिका मस्तकाभिषेक समारंभके साथ २ भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका नैमित्तिक अधिवेशन था जिसके लिये हमारे सेठजी ही सभापति निर्वाचित हुए थे । मस्ताभिषेककी मिती चैत वदी ५ नियत थी तथा महासभाका अधिवेशन चैत्र वदी १ से ४ ताः २६ मार्चसे २९ तक नियत था। सेठजीने बाबू साहबको कहा कि इस समय आप हमारे साथ दक्षिणकी यात्रा करिये और जैनविद्री सरीखे अति प्राचीन स्थलके दर्शन कीजिये, जहांसे श्रीभद्रबाहु श्रुतके वलीने समाधिमरण प्राप्त किया व जहां श्री बाहुबलि स्वामीकी अति मनोज्ञ ध्यानाकार ५६. फुट ऊँची प्रतिबिम्ब विराजमान है । सेठजीने बाबू साहबके चित्तको ऐसा आकर्षित कर लिया था कि आपने तुर्त ही अपनी
___स्वीकारता दे दी । अब सेठजी सकुटुम्ब रश्री बाहुबली मस्तका- वाना हुए । साथमें ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी भिषेक और और बाबू जुगमन्दिरलालजी थे। एक ही सेकंड महासभा । क्लासमें बैठकर मदरास मेलसे सब लोग
बेलगाम हुबली होते हुए टिपटूर स्टेशन प. हुंचे। वहांपर अनेक जैनी जन स्वागतार्थ खड़े थे। सेठनीको बड़े सम्मानके साथ स्टेशनसे ३० मीलके करीब श्रवणबेलगोला नगरसे एक मील इस तरफ ले जाकर ठहराया। इतने में हज़ारों भाई नानाप्रकारकी पगड़ी व वस्त्र पहरे एक पालकी लेकर आए। सेठ वर्धमानैय्या मैसूरने सेठजीके गले में हार क्षेपण किया। दूसरोंने सेठजीपर पुष्पों
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