________________
महती जातिसेवा तृतीय भाग । [६४९ इसी अवसरपर खुरजेवाले पंडित सेठ मेवारामजी दक्षिणकी
यात्रासे लौटकर बम्बई आए थे और इसी पंडित मेवारामजीका तारीखकी रात्रिको आपका व्याख्यान नियत व्याख्यान । हुआ था। जिसके छपे नोटिस वितरण हो
चुके थे । सेठजी रात्रिको हीराबाग लैकचर हालमें उक्त बाबू साहबको ले गए। सभामें जैन अजैन अनेक प्रतिष्ठित भाई थे। प्रथम ही ब्र० शीतलप्रसादनीने मंगलाचरण करके सभाका हेतु कहकर कहा कि आन पंडित मेवारामजी " जगत्कर्ता ईश्वर नहीं है " इस विषयपर भाषण देंगे। सभाको बाबू जुगमन्दिरलालका परिचय कराया और कहा कि आप ४ वर्ष विलायत रह बैरिस्टरी पास करके आज ही बम्बई पधारे हैं । दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचंदनी जे० पी० की प्रार्थनासे एलफिंस्टन हाईस्कूलके संस्कृत प्रोफेसर मगनलाल दलपतराम शास्त्री एम० ए०ने सभापतिका आसन ग्रहण किया। सभापति के बैठनेपर पंडितजीने अपना व्याख्यान बहुत ही विद्वत्तापूर्ण दिया जिसको सुनकर पंडित लालनने उठकर कहा कि इस अपूर्व विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानको सुनकर मैं इतना मुग्ध हो गया हूं कि जी चाहता है कि पंडितजीका साथ निरंतर करूं । बाबू जुगमन्दिरलालने भी व्याख्याताको धन्यवाद दिया और कहा कि मैं आज इनके युक्तिपूर्ण व्याख्यानको सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ हूं। सभापतिजीने कहा कि आजके व्याख्याता एक बड़े अच्छे पंडित हैं। मेरा जैनधर्मसे जो परिचय हुआ है उससे मैं कह सक्ता हूं कि इसके बहुतसे अंश वैष्णव धर्मसे साम्यता रखते हैं। यदि जैन
और वैष्णव धर्मके आचार्य मिलकर एक विश्व धर्म निर्मापण करें तो भारत क्या बल्कि जगत्का उदय हो जाय।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org