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अध्याय बारहवां यह पुस्तक तथा एक गीतावली अपनी बिरादरी में बांटी व खास २ व्यक्तियोंको दी। भानी बाटनेकी अपेक्षा पुस्तकोंकी भेट बहुत लाभदायक है तथा फूलकुंगर कन्याशालाकी बालिकाओंको इनाम वितरण करनेकी सभा चंदावाड़ी में बैशाख सुदी १३को सेठ तुलसीदास त्रिभुवनदासके प्रमुखत्वमें करके इनाम बटवाया तथा तारामतीके लग्नके हर्षमें ५००, कन्याशालाको भेट किया। तथा स्याद्वाद पाठशाला आदि संस्थाओंको दस २के हिसाबसे ११०) रु. का दान किया। इस प्रसंग पर सेठ नवलचंद हीराचंवनीके पुत्र रत्नचंदकी सगाई सूरत में ही पक्की हुई जिपके हर्षमें लघु अभिषेककी पुस्तक वितरण की । पुम्कोंकी भेट सर्व भेटोंसे श्रेष्ठ भेट है।
जेठसे भादों तक सेटजी शांतिसे बम्बई रहकर यथा सार धर्म साधन करते रहे व तीर्थक्षेत्र कमेटीके कार्यों में विशेष लक्ष्य दिया। शिवरजी पर्वतके पट्टेपर देनेकी स्वीकारता बंगाल गर्नमेन्टने
कर दी थी व ५००००) जमा भी करा दिये शिखरजीकी फिर थे। डिप्टी कमिश्नर हजारीबागकी आज्ञासे चिंता । पहाड़की माप आदि होने लगी इसी में बहु
तसा समय बीता । पकी लिखा पढ़ी हो नहीं पाई थी कि यकायक गवर्नमेन्ट बंगालके सेक्रेटरी डबलू. आर. गोरलेका पत्र नं० १३८० टी. आर. ताः ६ सितम्बर १९१० का मार्गन एंड कम्पनीके नाम आया जो दिगम्बरियोंकी तरफसे सोलिसिटर नियत थे, जिसका आशय यह था कि श्वेताम्बरी सम्प्रदायके हकको ज्यादा पसन्दगी देकर जो पट्टा ता० २६ नवम्बर १९०८को हुआ था उसे भारत सर्कार न्याय रूप नहीं समझती
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