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महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ६२५ सहायता देते थे उसमें कभी कमी न कीजिये मेरा काम सब धर्मका ही काम है। मुझे आपने धार्मिक कामोंमें बहुत मदद दी है पर जब तक मैं जीवित हूं तब तक मुझे आप मदद करेंगे तो मैं कुछ भी धर्म व जातिकी सेवामें अपने मन, बचन, कायको लगा सकुंगा । शीतलप्रसादनीने कहा कि मेरे इन नियमों के धारनेसे आपके काममें किसी प्रकारकी वाधा नहीं पड़ेगी । आप निश्चिन्त हो जसे धर्मकार्य करते थे वैसे ही करें। मुझसे जहाँतक बनेगा आ की सहायताको तैय्यार रहूंगा । आपका जो काम है सो मेरा ही है। इस तरह कहनेसे सेठनीको बहुत सन्तोष हुआ
वास्तव जबतक बाह्यमें निवृत्ति मार्गको धारण नहीं किया नाताक चित्तके संकल्प विकल्प नहीं मिटते । तथा जबतक निय तिज्ञा नहीं होती तबतक मन चन्दर व इन्द्रिय काबूमें नहीं आती जबतक मन और इन्द्रिये स्थिर न हों तबतक ध्यान स्वाध्याय नहीं हो सकता। और जबतक ध्यान स्वाध्याय नहीं हो तबतक इत्मोन्नति नहीं हो सकती। इस आत्मोन्नतिकी तरफ लक्ष्य धरना यही सर्वसे पवित्र काम मनुष्यके जीवनका है। इसके पथपर चलना और इसके विराधक काम, क्रोध, लोभ, मोह, शत्रुओंको विजय करते जाना यही वीरता व वीर पुरुषका कार्य है । आस्माकी उन्नति केवल बातें बनानेसे व अपनेको ज्ञानी व अकर्ता मान लेनेसे नहीं होती। ज्ञानपूर्वक रागद्वेषादि विकारोंको जब हटाया
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