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महती जातिसेवा तृतिय भाग । भारी मंडपमें विधिपूर्वक हुआ। सभी प्रान्तोंके धनवान, विद्वान् व परोपकारी आगए थे। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका १४ वां वार्षिकोत्सव माघ सुदी १ ता० १० फर्वरी १९१० से प्रारम्भ हुआ। इस जल्सेके लिये श्रीमान् सेठ हुकमचंदजी इन्दौर निवासी सभापति नियत हुए थे सो माघ वदी ३० ता० ९ फर्बरीको गाजेबाजे के साथ अपने पुत्र हीरालालके साथ १ हाथीपर विराजमान हो आए। सर्व भाइयोंने स्वागत करके मनोज्ञ डेरेमें ठहराया। बम्बईसे सेठ माणिकचंदजी, ब्र० शीतलप्रसादजी, मूलचंद किसनदास कापड़िया-सम्पादक दि, जैन भी आए थे । २॥ बजे दिनको जल्सा शुरू हुआ। पहले ही श्रीमान् पंडित गोपालदासजीने मंगलाचरण किया । फिर महामंत्री मुंशी चम्पतरायजीने सभापति होनेके लिये सेठ हुकमचंदजीका प्रस्ताव किया। इसका समर्थन श्रीमन्त सेठ मोहनलाल खुरई और श्रीमान् सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी. ने किया। सेठजीने अपना भाषण पढ़कर १००००) महासभाके प्रबन्ध खाते में दिये। कुल बैठकों में १९ प्रस्ताव पाप्त हुए, जिनमें मुख्य ये थे-(१) सर्कारसे प्रार्थना-कि बड़े लाटकी धारा सभामें जैन जातिका प्रतिनिधि नियत किया जावे जैसा कि ता० १९-१०-०९ के पत्रमें आशा दिलाई गई है । व इसका तार भेना जावे, (२) ११ प्रतिमाधारी ऐलक पन्नालाल और ब्रह्मचारी शीतलप्रसादके साहसपर हर्ष, (३) जैन बैंक खोला जावे, (४) वाइसरायसे प्रार्थना की जाय कि भादों सुदी ५ और १४ को जो दिगम्बरियोंके महान पवित्र दिवस हैं, तमाम भारतमें नाहर छुट्टी मनाई जावे, (५) सभापति-दानवीर सेठ माणिकचंदजी व महामंत्री सेठ हुकमचंदनी और कोषाध्यक्ष मुंशी चम्पतरायनी
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