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महती जातिसेवा द्वितीय भाग
धर्म सम्बन्धी
[ ६०५ मोतीचंद्रजी के पुत्र प्रेमचन्द्रजी, पानाचन्द्रजीके पुत्र रत्नचन्द्रजी, माणिकचन्द्रजीके पुत्री मगनव्हेन, नवलचन्द्रजीके पुत्र ताराचन्द्रजी हुए। स्वकीय नामकरणों को अपने गुणोंसे विभूषित किया - "यथा नाम तथा गुणः " इस कहावत को चरितार्थ किया । प्रथम ही तो बम्बई में हीराचन्द्रजी गुमानजी के नामसे बोर्डिंग स्थापित किया, इन्हीं नररत्नोंने हीराबागका बृद्धन यात्रीगणोंके विश्रान्तिके लिये बनाया . और आपहीके घरानेसे अहमदाबाद, कोल्हापुर, जबलपुर इत्यादि स्थानों में दिगम्बर जैन बोर्डिंग स्थापित किये हैं, धार्मिक विद्या के प्रचारार्थ उदैपुर में एक पाठशाला स्थापित की है और स्याद्वाद पाठशाला काशी, तथा अन्यान्य पाठशाला तथा कार्यों में तन मन धन से सहायता करते रहते हैं वर्षीय धर्मसंक्षिणी दिगम्बर जैन महासभा के ( जंबूस्वामी के मेले ) पर श्रीमान् परम दयालु गुणज्ञ राजा लक्ष्मणदासजी सी० आई० ई० ने भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र कमेटीका कार्य सम्पादन करनेके लिये आप ही को महामंत्री नियत किया था, सो आपने सहर्ष स्वीकार करके सपरिश्रम तन मन धन द्वारा स्वकीय धर्मनिष्ठा से दिगम्बर जैन तीर्थो का सच्चा महदुपकार किया । और सम्मेद शिखर, गिरनारजी, शत्रुंजय, अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ, तारंगा, मांगीतुंगी आदि तीर्थक्षेत्रोंपर कितनी विपत्तियां थीं सो सर्व आपकी पूर्ण सहानुभूति से सहज ही में दूर हो गईं और भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अधिवेशन ( सहारनपुर ) में सभापति के आसनको सुशोभित करके आपने जैन जातिकी भरसक सेवा की थी । आप ९ वर्ष दिगम्बर जैन प्रांतिक सभा बम्बईकी तन मन
और भारतवार्षिकोत्सव
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