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६१२] अध्याय ग्यारहवां । की गई। ता; २४ तक ५ बैठकें हुई जिनमें २१ प्रस्ताव पास हुए उनमें उल्लेख योग्य ये हुए:-(१) अहमदावादमें बांम्बके हमलेसे बचनेके कारण बड़े लार्ड मिन्टोके लिये आनन्द प्रदर्शन करके तार भेजा गया (२) प्राथमिक शिक्षणका प्रसार हो, (३) नवीन कायदे कौन्सिलमें जैन प्रतिनिधि रखनेका बम्बई सारने जो वचन दिया है इसके लिये सर्कारका आभार माना गया, (४) धर्मशिक्षणके प्रचारकी जरूरत। इसको पेश करते हुए सेठ हीराचंद नेमचंदने कहा कि इस महाराष्ट्र देशमें जव १०० में १५ धर्मको जानते, तब उत्तर हिन्दुस्तान में १०० में ७५ हैं, (५) खेती व व्यापार ये जैनियोंके मुख्य धंदे हैं इस लिये इनमें पाश्चात्य विद्याकी सहायतासे नवीन सुधारणा करनेका प्रयत्न जैन लोगोंको करना चाहिये । इसका समर्थन करते हुए सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी. ने कहा कि कच्छी और माड़वाड़ी लोग अपने देशसे फक्त डोरी और लोटा लेकर आते हैं और इस देशमें आकर थोड़े ही वर्षों में धनवान बन जाते हैं । इस उदाहरणको मनमें लेओ। उन लोगोंको अपने घरमें छुटपनमें ही व्यापारी शिक्षण मिलता है इसी तरह जुमलोग भी पद्धतिसे उद्योग करोगे तो संपन्न हो जाओगे।" वास्तवमें सेठजीके वचन बहुत उपयोगी हैं कारण जो बालकोंको बड़े होने तक भी व्यापार करना नहीं सिखाते हैं वे व्यापार करने लायक नहीं बनते हैं। व्यापार करना भी एक शिक्षा है। जैसे
और कला चतुराई शिक्षा विना नहीं आती ऐसे ही व्यापार करना नहीं आसक्ता है। (६) उपाध्यायोंको शास्त्रानुसार रीतियां जानकर संस्कार क्रिया आदि व उपदेशादि क्रियाएं
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