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. महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [६१५ इन दिनों ऐलक पन्नालालजी इसी तरफ थे। शोलापुर
वालोंकी इच्छानुसार आपने अपना केशलोंच शीतलप्रसादजीके मिती मगसर सुदी १ वीर सं० २४३६ ब्रह्मचारी होनेका ताः १३ दिसम्बर १९०९ नियत किया था। कारण। अतः शोलापुरमें बडी तैय्यारियां हो रही थी।
- शीतलप्रसादजी मांगीतुंगीजीसे बम्बई आकर एक दिन एकांतमें विचारने लगे कि हे आत्मन् ! अब तेरी स्थिति कैसी है ? तुझे क्या कर्तव्य है ? तुझे इस शरीरमें रहते हुए अनुमान ३१ वर्ष हो चुके । तेरा बड़ा भाई अनन्तलाल ८ मास हुए करीब ३८ वर्षकी आयुमें ही यकायक चलबसे । यदि तुमभी थोड़ी ही उम्र में चल दोगे तो तुमसे कोई भी विशेष लाभ नहीं हुआ । तुम्हारा यह अमूल्य जीवन वृथा ही गया ऐसा होगा। इससे तुम्हें कुछ विशेष काम करना चाहिये । इस समय शीतलप्रसा जीको अध्यात्मिक ज्ञानका मनन रहता था । जिसका कारण यह था कि चौपाटीके संस्कृत ग्रन्थों में श्री कुंदकुंदाचार्य महाराजकृत समयसार ग्रंथकी तात्पर्यवृत्ति टीका बहुत सुगम थी। उसे एक दफे स्वयं समझकर दुवारा श्रीमती मगनबाईजीको बंचवाई व बृहद् , द्रव्यसंग्रह और पंचास्तिकायकी संस्कृत टीकाका भी भाषाकी सहायतासे मगनबाईनीके साथ स्वाध्याय किया था व गोम्मट्टसार जीवकांडकी संस्कृत टीका जो चौपाटीपर थी उसका भी विचार किया था। इससे परिणामोंमें शुद्ध आत्म मननकी कुछ रुचि हुई थी। उस रुचिके ही कारण अनुभवानंद नामका लेख जैनमित्रमें निकलने लगा था । सन् १९०९में कर्मयोगसे शीतलप्रसादनीको
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