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महती जातिसेवा द्वितीय भाग [६१९ सोलापुरमें उत्सवका दिन निकट आगया । इस उत्सवमें
सेठजी नहीं गए थे । मगनबाईजी आदि २ सोलापुर में त्यागी दिन पहले पहुंच गये थे। मिती मगसर पन्नालालजीका वदी १५ की रातको मेलमें शीतलप्रसादनी केशलोंच। माता रूपाबाईके साथ एक ही डब्बेमें
शोलापुर रवाना हुए। इस रात्रिको बहुत भीड़ थी सो बैठे बैठे ही जाना हुआ। करीब तीन बजेके जब रात्रि हुई तब सर्व डब्बेवाले करीब करीब ऊंघ गये या सुस्त हो गए थे तब शीतलप्रशादनी कुछ गाने लगे-चित्तमें कुछ वैराग्यकी तरंगे उठ आई जिससे १२ भावनाओं का १ मजबून सबेरे शोलापुर पहुंचने तक बनाकर पेन्सिलसे नोट बुकमें लिख लिया ।वे १२ भावनाएं ये हैं---
बारह भावना । (१) अनित्य भावना। है नित्य न कोई वस्तु जान संसारी ॥ याके भ्रममें नित फसे रहें व्यवहारी ॥ तन धन कुटुम्ब ग्रह क्षेत्र क्षणकमें बिनसे ॥ भावो अनित्य यह भाव आत्म चित्त परसे ॥ १ ॥ .. (२) अशरण भावना । कोई न शरण त्रैलोक्य माहिं तुम जानो ॥ नर नारकदेव तिर्यञ्च, काल गति मानो ॥ रे आतम, शरणा गहो पवित्रातमकी । निर्भय पद लहके तजो फिरन गतिगतिकी ॥ २ ॥ .
(३) संसार भावना । चउ गति दुखकारी जीव सुक्ख नर्हि पावे । गयो काल अनन्ता बीत छोर नहिं आवे ॥
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