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अध्याय ग्यारहवां । गए । सेठ नवलचंदजी भी गए। दोनों पहाड़ोंपर अभिषेक पूना हुई। करीब ६००) की उपज हुई । मांगीसे तुंगी जाते हुए बीचमें एक ऐसी जोखमकी जगह आती है जहां केवल १ आदमी कठिनतासे चल सकता है । इस स्थानपर दोनों ओर पकड़कर जानेके लिये बुद्धिमान् सेठ नवलचंद हीराचंदने ५ वर्ष हुए लोहेके सीकचे व तार लगवा दिये थे, इससे किसीके गिरनेकी जोखम नहीं रही थी। इस पर्वतकी ऐसी महिमा है कि इस दिन एक स्त्री रजस्वला थी तो उसके चारों ओर भ्रमरोंने घेर लिया और ऐसा काटा कि वह बेहोश . हो गई और डोलीसे नीचे लाई गई। ___ सुदी १५ को यहां रथ उठता है, अजैन हजारों आते हैं, अबके ८००० आदमी आए जो पहले पर्वतपर जा बलभद्रकी पीठकी पूजा करते नारियल चढ़ाते फिर नीचे आकर मंदिरोंके दर्शन करते हैं। एक हाथीपर अंबाडी रखकर श्रीजीको विराजमान किया गया था । सभापति प्रतिमानीका सिंहासन लेके आगे बैठे, पीछे महावतके स्थानपर सेठ गुलाबचंद हीरालाल धूलिया, दो छड़ी लेकर दोनों ओर सेठ पीताम्बरदास पारोला ब शा० नेमचंद कस्तूरचंद सूरत तथा दो सुवर्णके चमर लेके दोनों ओर सेठ नवलचंद हीराचंदनी और चिमनलाल जैसिंगभाई अहमदाबाद बैठे । इस सर्वकी ७००) की बोली हुई । सबेरे दोनों मंदिरों में अभिषेकके समय भी ३००) की उपज हुई। १०००० से अधिक जनसमूहके साथ सवारी बागमें गई। वहां अभिषेक हुआ जिसमें ८००) की उपज हुई। इस भीड़में मराठाओंको मदिरा त्यागका उपदेश देनेपर २०० ने नियम लिया।
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