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महती जातिसेवा द्वितीय भाग ।
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१ तक सभाकी बैठकों में १५ प्रस्ताव पास हुए जिनमें मुख्य ये थे(१) पुत्र पुत्रियोंको धार्मिक व व्यवहारिक शिक्षा दी जावे । इसको शीतलप्रसादजीने पेश कर के बम्बई प्रान्तके जैनियोंकी शिक्षाकी शोचनीय दशा बताई कि २८०००० पुरुषोंमें केवल ७१४०० पढ़े हुए व २५६०० स्त्रियोंमेंसे ३५८४ ही पढ़ी ( २ ) उपदेशकोंकी आवश्यकता है । हरएक भाषाके ज्ञाता तय्यार हो। इसको मूलचंद किसनदासने पेश किया व सीतलप्रसादजीने समथन किया (३) जैन संस्कार विधिका प्रचार - इसको भी शीतलप्रसादजीने एक व्याख्यान द्वारा स्पष्ट किया ।
(४) दिगम्बर जैन धर्मानुयायी सर्व जातिया परस्पर खानपान करें। ( ५ ) जातीय समाएं स्थापित हों ( ६ ) औद्योगिक उन्नति के लिये स्वदेशी वस्तुएं काममें ली जावें । इसको सेठ रावजीभाई नेमचंद शोलापुरने पेश किया व शीतलप्रसादजी, मूलचंदजी आदि कई भाइयोंने समर्थन किया । (७) मांगीतुंगी तीर्थ प्रबन्धकारिणी सभा तीर्थका हिसाब प्रगट करें व हर वर्ष करती रहे इसको शीतलप्रसादजीने पेश किया और सेठ नवलचंदजीने समर्थन किया ।
श्रीमती मगनबाईजी के प्रयत्नसे स्त्रियों में भी उपदेश अच्छा हुआ । वदी १ की रात्रिको भारी महिला परिषद सभापतिकी धर्मपत्नी जीवूबाई के सभापतित्वमें हुई । मगनबाईनी व कस्तूरीबाई जीके व्याख्यान हुए। जैन नियमपोथी और गीतावली पढ़ी हुई बहनों को बांटी गईं। स्त्रीशिक्षा प्रचारार्थ १६५|| ) | का फंड हुआ । कार्तिक सुदी १४ को प्रायः सर्व स्त्री पुरुष यात्रार्थ पर्वतपर
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