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५९८ ] अध्याय ग्यारहवां गुजरातका विशेष हित हो, सेठजीने अहमदाबादमें खो लनेका प्रबन्ध करा दिया । अब मगनबाई व ललिताबाई वहीं रहने लगीं और शिक्षादानमें मन वचन कायसे लीन हो गई। रात्रिकी सभामें ३००) का फंड आश्रमके लिये हुआ । . यह आश्रम अब बंबई आगया है। इससे बहुत लाभ हुआ है । जिस समय स्थापित हुआ केवल ४ बाइयें ही भरती हुई थीं। पर १ वर्षके भीतर २२ श्र विताएं हो गई जिनमें कन्याएं ७, सधवाएं ३ व विधवाएं १२ थीं, जो आमोद, छाणी, बड़ौदा, बसो, शाहपुर, अंकलेश्वर, कलोल, सोजित्रा, जंबूमर आदि ग्रामोंकी निवासिनी थीं। इनमें से श्रीमतीव्हेन तबनप्पा तय्यार होकर अब बड़वाया जिला नीमाड़की कन्याशालामें शिक्षा दे रही हैं। प्रभावतीव्हेन शीतलसा शिक्षिकाका अभ्याप्त अहमदाबाद ट्रेनिंग कालेनमें कर रही हैं। श्रीगिरनारंजी सिद्धक्षेत्र जूनागढ़ रियासतसे ४ मीलपर बहुत
ही मनोज ऊंचा व रमणीक अनेक प्रकार सेठजीका काठिया- जंगलोंसे सुशोभित प्रसिद्ध पर्वत है इसको बाड़में भ्रमण । उज्जयंतगिरि भी कहते हैं। यहांसे श्री कृष्णके
चचेरे भाई जैनियोंके बाईसवें तीर्थकर श्री नेमीनाथ व वरदत्तादि ७२ करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं। , पर्वत पर व नीचे दिगम्बर जैन मंदिर हैं, जूनागढ़में कारखाना है। यद्यपि इस तीर्थकी बहुत बड़ी सेवा परतापगढ़ जिला मालवाके दिगम्बर जैनियोंने की थी तथापि जबसे बड़ी मन्नालालजी प्रबन्धकर्ता हुए, अन्धेर बहुत होने लगा। यात्रियोंको कष्ट-जिसकी
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