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महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [६०१ समयका ज्ञान करसके । अनेक प्राचीन ग्रंथ गुजराती भाषाके भी देखने में आए परंतु उनकी लिपि हिन्दी ही थी। इससे प्रगट होता है कि पहले हिन्दी अक्षरों में ही गुजराती भाषा लिखनेका महत्त्व था। यहां २०० वर्षके पुराने गुजराती भाषाके पर हिन्दी लिपिके इस्तावेज भी मौजूद थे। राजकोट दिन भर ठहरकर रात्रिको चलकर ताः २८ को
सबेरे जूनागढ़ आये। कमेटीके लिये यही दिन गिरनारजीका नियत था । अपनी धर्मशाला बहुत ही मरम्मत निरीक्षण। तलव व ठहरनेके अयोग्य थी। तब सेठजी
एक भाटियेकी धर्मशाला में ठहरे । इन्दौर, अजमेर रतलामादि भी पत्र दिये थे पर सिवाय भावनगरके शा. नारायणदास नरोत्तमदास, शा. हीराचंद गीगामाई, शा. अमृतलाल विठ्ठलदासके और कोई नहीं आए । सेठजीने इन्हीं उपस्थित छः महाशयोंकी कमेटी नियमानुसार करके रिपोर्ट तय्यार की उसमें बम्बई में दुरुस्त की हुई नियमावली व छपकर प्रसिद्ध की हुई नियमावलीके फर्क बताए व उस नियमावली तथा बाहरके मेम्बरोंको प्रबन्धकारिणीमें रखनेको लिखा । ८ वर्षका हिसाब योग्य आडिटरोंके द्वारा जांचा जावे तथा पूनाके उपकरण, पोथी व कहां २ क्या २ मरम्मत की जरूरत है सो सर्व रिपोर्ट लिख दी व मुनीम अमृतलालजी उस समय जैनी था उसको सर्व समझाया व वही खाता लिखनेकी रीति बताई तथा कमेटीके भेजे हुए मुनीम भगवानदासको-जो वहां ठहरा हुआ था-सब मेम्बरोंने एक लिखित सूचनापत्र यात्रियोंके दिखानेके लिये दिया कि जब
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