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महती जातिसेवा द्वितीय भाग । जीके दिगम्बर जैन कारखानोंकी व भंडारकी रक्षा आपके बड़े भारी जातीय परिश्रमका फल है । ३० वर्षकी उमरसे आप बराबर नियमसे स्वाध्याय करते थे । सं० १९४२ से १९५५ तक श्री शिखरजी, गोम्मटस्वामी, गिरनारजी, शेजा, केशरिया आदिकी अनेक तीर्थयात्रा करके धर्ममें द्रव्य लगाया। श्री गजपंथाजी और शोलापुरके बम्बई प्रांतिक सभाके उत्सवोंका बहुत ही प्रशंसनीय प्रबन्ध सेठ चुन्नीलालने किया था । इनकी बुद्धि बहुत तीक्ष्ण थी। व्यापारमें भी बहुत कुशल थे । यह सेठ माणिकचन्दके कुटुम्बके हर काममें दाहने हाथ थे । इनके दो पुत्रीं हुई थीं, जिनमें इनके मरते समय एक पुत्री कीकीब्हेन २६ वर्षकी मौजूद थी।
सेठ चुन्नीलालकी धर्मपत्नी जड़ावबाईकी धर्ममें विशेष लग्न है। थोड़े दिन हुए इसने २५००) खर्चकर सुरतके शांतिनाथनीके मंदिरजीमें चांदीकी वेदी बनवाई है तथा मांगीतुंगी और पावागढ़में मंदिरोंमें संगमर्मर लगवाया है। ___ यह स्वाध्याय पूजन नित्य करती है व धर्म कार्यों में नित्य थोड़ा बहुत दान करती रहती है । स्त्रीशिक्षाकी उत्तेजनापर भी ध्यान है। सेठ चुन्नीलालने केवल ३९ वर्षकी आयु पाई। इतनी उम्र में आपने जैन समाजकी जो सेवा बनाई उससे यह समाज आपका सदा कृतज्ञ रहेगा। तीर्थभक्तिमें अपूर्व परिश्रम करने व मरण समय श्री शिखरजी हीका ध्यान करनेसे अवश्य आपको उत्तम गतिका लाभ हुआ होगा
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