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अध्याय ग्यारहवां । किया । सेठजीने आपकी प्रशंसा करके मानपत्र भेट किया। ऐसे मानपत्रके भेटकी शोभा वास्तवमें ऐसे दानवीर परिग्रह परिमाण व्रत धारी सेठके द्वारा ही उचित थी। पावागढ़में मिती माह सुदी १२ से १५ तक बम्बई दि०
जैन प्रान्तिक सभाका उत्सव बड़ी धूमधामसे पावागढ़में बंबई हुआ । गुजरात देशके कई हज़ार जैनी प्रांतिक सभा। एकत्र हो गए थे। सेठ हीराचंद नेमचंद
शोलापुर जो इस सभामें प्रमुख नियत हुए थे सेठ माणिकचंदनी जे० पी०, लल्लूभाई प्रेमानंद व सेठ रावजी सखारामके साथ ता० १३ फरीको सबेरे बड़ौदा स्टेशनपर पधारे। उस समय बड़ौदाके पंचोंने हारतोड़ा व मानपत्रसे सम्मानित किया। शीतलप्रसादजी यहां १ दिन पहले आ गए थे । फिर यहांसे सब मिलके चांपानेर स्टेशनपर पहुंचे । वहां बालन्टियरोंने गाजे बाजेके साथ सम्मानित किया। यहां कलेवा करके पार्टी गाड़ियों द्वारा पावागढ़ पहुंची। वहां एक जुलुसके साथ स्वागत हुआ। स्वयंसेवकोंने अपने हाथसे गाड़ी खींची। ता० .१४ फर्वरीसे सभाकी तीन बैठकें हुई। प्रथम ही हरजीवन रायचंद आमोदके पुत्र शांतिलालने संस्कृत श्लोकों में मंगलाचरण किया। फिर स्वयंसेवकोंने सेठ माणिकचंद और सेठ हीराचंद, दो धार्मिक परोपकारी मित्रोंके गुणानुवाद वर्णन किये। सेठ लालचंद कहानदासने स्वागतकर भाषण दिया। फिर सेठ माणिकचंदनीके प्रस्ताव व जयसिंहभाईके अनुमोदनसे सेठ हीराचंदजी सभापति हुए । आपने अपना विद्वत्तापूर्ण छपा हुआ भाषण सुनाया फिर लल्लूभाई प्रेमानंददासजीने रिपोर्ट पढ़ी। पहली
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