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५५२ ] अध्याय ग्यारहवां । दिया है। ऐसे पास होनेवाले गृहस्थोंको शिक्षाके उत्तेजनार्थ ऐसे मेडलोंके देनेकी जरूरता है।"
४-उपदेशकोंके भ्रमणकी आवश्यक्ता-इसको शीतलप्रसादजीने पेश किया व लल्लूभाई प्रेमानंदने समर्थन किया तथा इसी समय अपील करनेपर १२००) का चंदा तुर्त हो गया। इसमें सर्वसे पहले दानवीर सेठ माणिकचंदनीने २०१) व सेठ हीराचंदने १५१) प्रदान किये।
५-ता० १ फर्वरीको कलकत्ते में जो श्रीयुत छोटे लालने शिखरजी पर्वत सम्बन्धमें पूरा विचार करनेको कहा है, उनको यह प्रान्तिक सभा फिर सूचित करता है कि सम्पूर्ण पर्वत पवित्र है इससे वहां बंगले हरगिज़ न बनाए जावे व इसकी नकल छोटे लाटकी सेवामें भेजी गई।
६-पावागढ़पर एक अंग्रेन कम्पनीने तांबेकी खान जानकर उसके खोदनेकी परवानगी सर्कारसे मांगी थी, इसका विरोध दिगम्बर जैनियोंने किया था तब इसकी जांच करनेको बम्बईके दयालु गवर्नर सीडनहेम क्लार्क बड़ौदाजपके रेसिडेन्टके साथ ता० २४ जनवरीको ४ बजे पावागढ़ पहाड़पर गए थे । उस समय बड़ौदा, बोरसद, करमसद आदिके बहुतसे दिगम्बर जैनी हानर थे। सबने योग्य सन्मान किया। फिर दाहोदके वकील जौहरी कालीदास जसकरण बी० ए० एलएल. बी. ने खान खोदनेसे जैनियोंके मंदिरोंको कैसी भारी हानि होगी व जैनियोंको धर्म सेवनमें क्या बाधाएँ आएंगी सो एड्रेसके रूप में समझाई । फिर सेठ लालचंद कहानदास प्रबन्धकर्ता तीर्थने हार तोडा पान गुलाबादिसे सत्कार किया। तब गवर्नर साहमने आभार मानते हुए कहा कि
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