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अध्याय ग्यारहवां ।
कार होवेगा । बाईजीने विचार कर १५ दिन बाद उत्तर देने को कहा । सेठजीने गजकुमारजीको अच्छी तरह जंचा दिया जो इस बाईके भ्राता हैं व स्टेट प्रवन्धकर्ता थे। यहांसे चलकर सेठजी बम्बई आए ।
श्रीमती मगनबाईजीकी प्रेरणा से लखनऊ निवासी श्रीमती पार्वतीबाई इधर उधर स्वखर्च से भ्रमणकर बहुत उपकार कर रहीं थीं । सर्धना जिला मेरठ में स्त्रियोपकारक नामकी सभा स्थापित की जिसकी सभा प्रति चतुर्दशीको होनी निश्चित हुई । वहांकी पाठशाला के प्रबन्धको ठीक किया तथा शिखरजीक - रक्षार्थ यहां व मुबारकपुर जाकर रु० ५००) का चंद्रा कराया । वहांसे सहारनपुर जाकर आश्विन सुदी ८ को किरपीबाईजी के - मंदिरजी में सभा की । स्त्रियोंकी ऋतु सम्बन्धी क्रियापर उपदेश देकर कई नियम लिया । आश्विन सुदी १० को आप नकूड़ गई। वहां तीन दिन सभा की। वहां विधवाश्रम कायम करनेको उपदेश देकर रु० १०२) का चंदा कराया । यहां से मुजप्फरनगर, खतौली व मेरठ उपदेश देती हुई दिहली पधारीं ।
श्रीमती पार्वतीबाईजीका कार्य व तीर्थभक्ति ।
श्री किष्किन्धापुर श्री पुष्पदन्त स्वामीका जन्मक्षेत्र है । वहां पर श्री जिनमंदिरजी व उस सम्बन्धी जमीनको सर्कार अपने
किष्किंधापुरकी रक्षा। ज़मीन है । इस कब्जे में करना चाहती थी तथा इसकेलिये नोटिस दिया था । इसकी उजरदारी गोरखपुर के भाईयोंन की तथा सेठजीको सुचना की । सेठजीने तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा छोटे
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