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महती जाति सवा द्वितीय भाग ।
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इस सन् १९०८ में सेठजी प्राय: बम्बई में इसी कारण ठहरे कि आपको शिखरजी पर्वतकी श्री शिखरजी सम्ब- रक्षाकी बड़ी भारी चिन्ता थी तथा उस न्धी चिन्ताका सम्बन्धी पत्र व्यवहार कलकत्ता आदिसे
उपशमन ।
बहुत आवश्यक करना पड़ता था । कलकत्ते में पर्वतरक्षा कमेटी रक्षा के पूर्ण उद्योग में लगी थी, लाट साहब से पूर्ण पर्वत के पट्टे की बात चल रही थी, कि इतने में पहले तारसे फिर पत्र द्वारा मालूम हुआ कि लाट साहबने दिगम्बर जैनियोंको पूर्ण पर्वतका पट्टा देदिया । ५०००० ) नजरानाके जमा करालिये और १२००० ) प्रतिवर्ष पालगंज स्टेटमें देनेका ठहराव हुआ । जो पट्टे उस वक्त तक थे उनको कायम रखके जो आमदनी हो सो दिगम्बरियों को मिले। इसकी स्वीकारता एफ. डबलू, डयूक चीफ सेक्रेटरी बंगाल सकरिने अपने पत्र नं. ४७०२ ता; ३० नवम्बर १९०८ को बाबू परमेष्ठीदास सरावगी और धन्नूलाल अग्रवालको दी तथा पत्र नं० ४७९१ ता० ३०-११-०८ उक्त सेक्रेटरीने सर्कारी सोलीसिटरको लिखा कि डिप्टी कमिश्नरकी रायसे लिखा पढ़ी करा लेवें ।
इस पत्र को पढ़कर सेठजीकी बहुत बड़ी चिन्ता दूर हुई और यह निश्चय हो गया कि अब पूज्य पर्वतवर बंगलोंकी वस्ती न बनेगी । द० म० जैन सभाकी वार्षिक बैठक श्री स्वनिधि क्षेत्रपर ता० ५ जनवरी से ८ जनवरी तक थी । सेठ माणिकचंदजी अपनी सुपुत्री मगनबाई सहित पधारे। इन दिनों शीतलप्रमादजीका शरीर ज्वरादिमं पीड़ित था इससे यह साथ नहीं गए । सुमा के अध्यक्ष श्रीमंत पायप्पा
द० म० जैन सभा और सेठजी ।
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