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अध्याय ग्यारहवां । नक्कप्पा उर्फ आप्पा साहब देसाई हनगंडीकर हुए । सेठ माणिकचंदनीने इनके अध्यक्ष स्थान लेनेके लिये अनुमोदन दिया। सभामें सेठ रामचंद्र नाथा आकलन व अनेक अजैन विद्वान् भी थे। इनमेंसे ता० ५ को अध्यक्षके भाषणके पीछे बेलगांवके प्रसिद्ध वकील रा. रा. श्रीपादराव छत्रेने व्याख्यान देने हुए कहा कि. "ऋग्वेदके काल में जैन मत उच्च दशामें था। ऋग्वेदकार
जैन तीर्थकरोंको बहुत पूज्य मानते थे। जैन लोग पाखंडी या नास्तिक नहीं है।"
बहुतसे प्रस्तावोंमें कई उपयोगी हुए जैसे ( १ ) कोल्हापुर बो० के लिये स्थान मुफ्त देनेके उपलक्ष्यमें महारान कोल्हापुरको धन्यवाद, (२) धन्यवाद सेठ नाथारंगजीको जो दो वर्ष में २४०) प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति देते हैं, (३) शिखरजीका मामला संतोषकारक निबटने के कारण बाबू धन्नूलाल, सेठ परमेष्ठीदास और सेठ माणिकचंदनीका उपकार, (४) हुबली में कनड़ी छात्रोंके लिये एक बोर्डिंग स्थापन हो इसके लिये रा० रा ० ब्रह्मप्पा तवनप्पवरने ५०१) दिये। सभापतिने २०००) दिये कि व्याजसे राजाराम कालिनमें सर्वोच्च जैन छात्रको छात्रवृत्ति दी जाय (५) प्रौढ़ विवाह किया जाय इस प्रस्तावको शेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० ने इन शब्दोंमें एक जोरदार भाषणके साथ पेश किया।
_ "बालक और बालिकाओंकी लग्न बड़ी उम्र में करनेसे उनकी प्रकृति अच्छी रहेगी, विद्याभ्यास अच्छी तरह चलेगा, तथा बाल वैधव्यके संकट कम होंगे" । (६) धर्मादे पैसेके उपयोगके प्रस्तावका
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