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अध्याय ग्यारहवां । . तारंगीजी पर्वतपर पहले केंगर नामकी लकड़ी
होती थी जो जलती व सड़ती नहीं है। अग्निमें न जलने- ऐसी कुछ लकड़ियां श्वे. मंदिरमें लगी वाली लकडी। हुई पाई जाती है । अब भी यह लकड़ी
__ यहांसे थोड़ी दूर ब्रह्माकी खेडक पास धूलिया वालरण गांवमें होती है। यहांसे सेठजी बम्बई आए । मिती कार्तिक सुदी १४ ता०
१७ नवम्बर ०७को दूसरे भोईवाडेके मंदिर में वम्बईमें शिखरजी- शिखरजी सम्बन्धी सभा हुई। सेठ माणिकी सभा। कचंदनीके पेश करने व लल्लुभाई परीखके
समर्थनसे सेठ सुखानंदनी सभापति हुए । इसमें शीतलप्रसादजीने पर्वतरक्षा कमेटो जो १२ महाशयोंकी शिखरजी पर बनी थी उसकी कार्रवाई सुनाई कि बाबू धन्नूलालजी छोटे लाटको समझानेके लिये दारनिलिंग गए व ता० ६ नवम्बरको फिर छोटे लाट शिखरजी आए तब सेठ परमेष्टीदास धन्नू बाबू आदि कई साहब मिले तब छोटे लाटने बहुत कठोर शब्द कहे कि हम पर्वतपर बंगले बनावेंगे, केवल टोंकके चारों तरफ कुल जमीन छोड़ देंगे। इस बातको सुनकर सभाने अदालती कार्रवाई करनेका प्रस्ताब किया व धन्नूबाबूको धन्यबाद पत्र भेजा जो वह अटार्नी होनेपर भी शिखरजीकी रक्षामें इतने दृढ़ प्रयत्नशील होकर दौड़धूप कर रहे हैं। सेठजीने सभाकी ओरसे खुरजेके सेठ हरमुखराय अमोलकचंदको खुरजेकी सभाकी सफलताके लिये धन्यवाद दिया ।
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