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अध्याय ग्यारहवां । ।
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समय सेठ माणिकचंदजीने १०१) कन्याशालाको भेट किये। जगह २ दानकी बर्षा करना ही सच्चा दानवीरपना है, जिस गुणसे सेठजी भलीभांति सज्जित थे। अजमेरसे श्री गिरनारजीकी यात्राको जाते हुए रास्तेमें
आबूरोड (खरेड़ी) स्टेशन है । यहां श्वेताआबूजीके मंदिरके म्बरियोंकी दो व हिन्दुओंकी १ धर्मशाला है। उद्धारका प्रयत्न । कुछ परदेशी दिगम्बर जैनी हैं जिन्होंने दो
मंजिला एक मंदिर बनवाया है। यहांसे आबूपहाड़के दिलवाड़ा स्थान तक २८ मील सड़क्र है । टांगे इक्के बैल गाड़ी जाती हैं। रास्तेमें सिरोही राज्यकी चौकी व कुएं दो दो मीलके फासले पर हैं। दिलवाड़ामें ५ जैन मंदिर ९०० वर्षके पुराने ३७२७२१८८००) रु. की लागतके हैं जिसकी प्राचीन पत्थरकी शिल्पकला दुनियां में अद्वितीय है । इन्ही मंदिरोंके मध्यमें एक दिगम्बरी बड़ा प्राचीन मंदिर है, जिसमें २३ बिम्ब हैं । मूलनायक श्री कुंथनाथ स्वामी हैं। इसके सिवाय इन मंदिर समूहके बाहर सरकारी सड़ककी दाहनी ओर दिगम्बरी श्रावकोंका एक बड़ा मंदिर श्री नेमनाथ स्वामीका है इसमें भिन्न २ तीर्थकरोंके १६ विम्ब हैं। शिलालेखसे मालूम होता है कि इस जिनालयकी प्रतिष्ठा ईडरके भट्टारक द्वारा वि० सं० १४९४ वैसाख सुदी १३ को हुई थी। इस मंदिरमें प्रायः देव अतिशय हुआ करते हैं, जैसे रात्रिको १२ बजे दीपकोंका उजियाला व बाजोंका बजना । बीचमें कुछ कालसे दिग० ने अपने मंदिरोंकी तरफ बिलकुल बेपरवाही कर रक्खी थी, श्वे० कारखानेकी तरफसे साधारण सम्हाल रहती थी, पर न पूजनादि
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