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अध्याय ग्यारहवां ।
कोठरियां व सामने ४ वरांडा और १ रसोड़ा बनवानेकी परवानगी अपनी ओरसे दी । २, ३ वर्षके भीतर रायबहादुर सेठ निमीचंद, हरमुखराय अमोलकचंद, विनोदीराम बालचंद, माणेकचाई बम्बई, आदिको उपदेश देकर पूनमचंदजीने १५० मनुष्योंके ठहरने योग्य स्थान बनवा दिया | हालमें पूनमचंदजी कोटा में हैं । प्रबन्ध आप ही करते हैं । सेठ साहबके तन मन धनके योग देनेसे और पूनमचंदजीके पूर्ण परिश्रम से श्री आबूजीका प्रबन्ध बहुत अच्छा हो गया है । इन दोनों को इस क्षेत्रका उद्धारक कह सक्ते हैं ।
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द० महाराष्ट्र जैन सभाका दशवां वार्षिकोत्सव पौष सुदी १४ से बढ़ी २ तक ताः १७ जनवरीसे द० म० जैन सभा २० तक श्रीस्तवनिधिक्षेत्र में बड़े ठाउसे व श्राविकाश्रम हुआ । इसमें देशभक्त रा० रा० गोपालकृष्ण कोल्हापुर | देवघर एम० ए० व श्रीधर गणेश बी० ए०
आदि कई सज्जनोंने भी पधारकर शिक्षा आदिके सम्बन्ध में उपदेश दिया था। इस उत्सव में सेठ माणिकचंदजी इस कारण से नहीं जा सके थे कि वे इसी समय शोलापुर गए हुए थे । आप स्वागत कमेटी के प्रमुख थे । आपने बहुत उदा सीके साथ तार भेज दिया था । श्रीमती मगनबाई भी नहीं आई थीं, पर उनका भेजा हुआ लेख " श्राविकाश्रमकी आवश्यक्ता " पर ताः १८ की महिला परिषद में सुनाया गया | महाराष्ट्र समाने पांचवा प्रस्ताव यह किया कि श्रीमती मगनबाईजीकी प्रेरणानुसार कोल्हापुर में एक श्राविकाश्रम खोला जावे । इसके लिये दानवीर सेठ माणिकचंदजीने १०) व बाबू देवकुमारजी, आरावालोंने भी
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