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५३८] - अध्याय ग्यारहवी । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका वार्षिक अधिवेशन
इस वर्ष कहां हो इसकी आपको बहुत बड़ी सेठजीका वार्षिक चिंता थी। मुंशी चम्पतरायजी महामंत्रीसे उत्सवोंके लिये व बाबू देवकुमारजीसे व बाबू जुगमन्धरदास उद्योग। नजीवावादसे पत्र व्यवहार करके कुंडलपुर
क्षेत्र (दमोह) में उसके वार्षिक मेलेपर उत्सक करना इस लिये उचित समझा कि सेठजी इस क्षेत्र पर हो गए थे व बुदेलखडके दिगम्बर जैनियोंकी अवनति दशाको जान चुके थे। यहांके जैनियोंमें उन्नतिका पवन भरे, इसी आकांक्षासे निश्चय करके सेठ बिंद्रावनजी दमोहसे लिखा पढ़ी करके समझाया। उक्त सेठजीने महासभाको बुलानेके लिये निमंत्रण पत्र दफ्तर महा सभाको मेज दिया, तब महा सभाके दफ्तरसे इस जल्सेकी सफलताके लिये तय्यारी होने लगी। इस समय महासभाके ज्वाइन्ट जनरल सेक्रेटरी बाबू जुगमन्धरदास रईस नजीबाबाद थे जो बहुत दिल लगाकर काम कर रहे थे। महासभाका काम इस समय बहुत जागृति पर था। सन् १९०७ में सूरतके दिसम्बर मासके अंतिम सप्ताहमें
राष्ट्रीय कांग्रेसका अधिवेशन होनेवाला था । सूरतमें कांग्रेस और इसकी स्वागतकारिणी सभामें सेठ माणिकजैन यंग मेन्स चंदनी भी मेम्बर थे। गुजराती मिती . एसोसियेशन। कार्तिक वदी ४ को सूरतमें स्वागतकारिणी
कमिटीकी सभा थी। इसमें सेठनी हरजीवन . रायचंद आमोद, लल्लूभाई प्रेमानंद आदिको लेकर गए थे। कां
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