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महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५३९ ग्रेसके लिये सभापति चुननेके लिये बैठक थी। इसी रात्रिको ७॥ बजे चंदाबाड़ीमें लल्लभाई प्रेमानन्द एल० सी० ई० के सभापतित्वमें एक सभा हुई । सेठ हरजीवन रायचंदने विद्योन्नतिपर भाषण दिया तथा "दिगम्बर जैन” पत्र मूलचंद किसनदास कापड़िया द्वारा शुरू होकर उन्नतिमें आवे ऐसी भावना प्रगट की । फिर सेठ. माणिकचंदजी जे० पी० ने इसकी पुष्टता की और सभाजनोंका आभार माना और मूलचंदनीको पत्र चलानेमें उत्तेजना दी । सेठजीको मूलचंदजीपर अधिक प्रेम इसी कारणसे था कि यह सेठजी द्वारा स्थापित हीराचंद गुमानजी जैन पाठशाला सूरतका फलरूप एक रत्न था। इन्होंने व्याकरण साथ चंद्रप्रभु काव्य तक अभ्यास कर लिया था।
सूरतमें जैनियोंकी अच्छी वस्ती है, इसलिये बाबू चेतनदास बी० ए० जनरल सेक्रेटरी, एसोसियेशनने वार्षिक जल्सा सूरतमें करना ठीक समझ कर सेठ माणिकचंदनी बहुत जोर देकर लिखा । सेठजीने मूलचंद किसनदास कापडियासे यह बात पत्रद्वारा प्रगट की । मूलचंदजी अभी ताजे ही ताजे जैन जातिके कार्यक्षेत्रमें आए थे। इन्होंने कुछ श्वेतांबरी सभासदोंसे वार्तालाप की और अति उत्साहसे सेठजीको लिख दिया कि सर्व प्रबन्ध हो जायगा । तब सेठजीने चेतनदासनीके साथ मूलचंदनीका पत्रव्यवहार कर दिया। ता० २२ नवम्बर १९०७ को चंदावाड़ीमें सर्व जैनियोंकी एक जाहर सभा नगरसेठ बाबूभाई गुलाबभाईके सभापतित्वमें हुई, जिप्तमें दि.० श्वे० स्थानकवासी जैनियोंमेंसे १५० मेम्बरोंकी एक रिसेप्सन कमेटी नियत हुई, इसके सभापति सेठ माणिकचंद हीराचंद
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