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महती जातिसेवा द्वितीय भाग
[ ५३३ शोलापुर के सेठका बनवाया हुआ है इसीके आसपास ४ वेदियां हैं। ० का एक बड़ा मंदिर ३० लाखकी लागतका कहा जाता है। सेठजीकी खबर पाकर सेठ पूनमचंद सांकलचंद आदि महाशय ईडरके व सुदासण, दांता, भाटवास, खेरालु आदिके दि० जैनी व कई श्वे ० जैनी भी आए थे । ताः २२ की रात्रिको दोनों सम्प्रदायवालों की कमेटी होकर यह तय हुआ कि यह तीर्थ दोनोंका है । जिस आदमीने दि० को रोका उसने भूल की। वह नौकरीसे अलग किया गया तथा दि० कोठीवाले बगिचेके भीतर के रास्तेसे भी कुंडका पानी ले सकते हैं । दि० व वं० दोनों ही यात्रियोंके आरामके लिये अपने २ प्रबन्धक कार्यको कर सकते हैं, कोई किसीके काममें बाधा न डाले ।
मुनीम द्वारा यह मालूम हुआ कि कोट शिलापर दो दिगबरी देहरियों को मरम्मत करने में श्वताम्बरी रोकते हैं तब ताः २२ को सवेरे दि० ० भाई सेठजी के साथ ऊपर गए । सेठजीका पैर एक अशक्त था तौभी आप बड़े साहसके साथ लकड़ी के सहारे पहाडपर चढे चले गए। यह १ मील उंची है। १ देहरी छोड़कर दिगम्बरी देहरी मिली जिसको चांद सूरजकी देहरी कहते हैं उसके भीतर ही यह लेख था ---
" संवत् १६२५ वर्षे पौष वदी ५ शुक्ले श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे आचार्य कुन्दकुन्दान्वय भट्टारक श्री शुभचंद्र स्तत्पट्टे भट्टारक श्री सुमतिकीर्ति गुरुपदेशात्हूंमड ज्ञातीय गांधी नरपति भार्या.
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इसी देहरीकी मरम्मत में श्वे ० रोकते थे सो यह दि० लेख श्वे •
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