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अध्याय आठवाँ ।
हैं वे सब यहींसे मोक्ष जाया करते हैं - अनन्ते २४ तीर्थकर हो गए व आगामी होंगे। उनकी व अनन्त मुनीश्वरोंकी मोक्ष इस पर्वत से हुई है इस कारण यह सर्व पर्वत पूज्यनीय है । इसकी दि० जैनियोंमें बड़ी भारी महिमा है । इस वर्तमान दुःखमा सुखमा कालमें हुंडावसर्पिणी कालके निमित्त २४ में से श्री ऋषभदेव कैलाश, श्रीवासपूज्य मंदारगिरी, श्री नेमनाथ गिरनार व श्री महावीर स्वामी पावापुरसे मोक्ष पधारे तौ भी इनकी कूट श्री शिखरजी पर नियत है । जो भाव सहित दर्शन करते हैं उनको दुर्गति नहीं प्राप्त होती । सर्व पहुंचे। सबसे पुरानी कोठी जो उपरैली है जिसको बीस पंथी भी कहते हैं उसमें ठहरे ।
सेठ नवलचंदजी भी सेट माणिकचंदजीकी तरह प्रबन्ध कार्य करने व क राने में कुशल थे । आप स्नानकर धोई हुई सफेद धोती और चदरा ओढ़कर अष्ट द्रव्य लेकर व कलस झारी रकावी छन्ना आदि लेकर सर्व साथियोंके साथ श्री शिखरजी की यात्राको चले। सीतानालेमें जाकर सामिग्रीको धोकर तय्यार हुए, और कलसमें प्रछालके लिये जल भरा । सीतानालेसे श्री कुंथुनाथकी टोंकको आते हुए पहाड़का चढ़ाव कुछ विकट मालूम हुआ । देखा कि जो वृद्ध स्त्री व पुरुष हैं व बालक
उनको इस चढ़ाई चढ़ने में बहुत कष्ट हो रहा है । पर भक्तिवश सब जा रहे हैं। सेठ नवलचंदजी भी चढ़ तो गए पर इनके मन में यह विचार आया कि यदि यहां सीढ़ियां वन जावें तो सबको बहुत सुभीता होवे | आपने सर्व कुटोंपर चरण पादुकाओंकी प्रछाल करते हुए अष्टद्रव्य चढ़ाते हुए, प्रदिक्षणा देते हुये बड़े भावसे नमस्कारपूर्वक भक्ति की । बीच में जलमंदिरजी आता है उसमें तीन स्थानों पर प्रति
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