________________
५८० ] अध्याय ग्यारहवाँ। आएथे और बड़ी धूमधामसे सेठजीको लेनाकर गोपीनाथनीने अपने मकानपर ठहराया। रथोत्सवका मेला एक वागमें था जहां स्त्री पुरुषोंकी बहुत भीड़ थी । दूसरे दिन सबेरे सेठजीने आगरा कालेजोंमें पढ़नेवाले जैन छात्रोंको अपने पास बुलाया । ७, ८ छात्र आए और उनसे सर्व हाल पूछा तो मालूम हुआ कि वे धर्मको कुछ भी नहीं जानते, न वे दर्शन स्वाध्याय जाप कभी करते, उनका श्रद्धान मूर्ति पूजासे गिरा हुआ था, करीब २ आर्यसमाजके से ख्याल हो रहे थे; क्योंकि आगरामें आर्य समाजका बहुत जोर है उसके उपदेश पुनः पुनः उनके कानों में पड़े थे इसीसे ऐसा असर हुआ था। सेठनीने पूछा, आप लोग जैनधर्मको क्यों नहीं जानते ? उत्तर मिला कि लड़कईसे हमारे पिताने हमें कुछ बताया नहीं । हम स्कूलमें इंग्रेजी पढ़ते रहे । कभी अनन्त चौदसको दर्शन कर आते थे। हम तो इतना ही जानते हैं कि हम जैन हैं पर जैनमतका कुछ भी हाल नहीं जानते, क्योंकि न हमें बताया गया और न कोई पुस्तकें पढ़नेको मिलीं यद्यपि हम कुछ २ हिंदी जानते हैं पर ज्यादा हमें उर्दूका ही अभ्यास है । सेठजीको इनकी बातोंको सुनकर दिलमें बहुत दया आई तथा इनको बम्बई बोर्डिंगका हाल व धर्मशिक्षाकी बात कही और मूर्ति पूजा आदि पर शीतलप्रसादजीने समझाया । रात्रिको बागमें शास्त्रसभाके पीछे सभा हुई। सेठजीको सभा
पति नियत करके आगराके जैनी भाइयोंने आगरामें मानपत्र । निम्नलिखित मानपत्र दिया:
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org