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अध्याय ग्यारहवां ।
किन्तु हमारे हृदय अत्यन्त प्रेमसे उमड़ रहे हैं और आपकी सेवा करने के लिये चित्त अतिशय उत्कंठित हो रहा है, परन्तु आपको सन्तुष्ट करनेके लिये उपायन्त्रकी अप्राप्तिमें फूल नहीं पंखरी ही सहीकी उक्तिसे यह छोटासा सम्मेलन करके आपके पवित्र कर - कमलों में हृदयके उचित उल्लासको अभिनन्दनपत्रका स्वरूप देकर अर्पण करते हैं।
यद्यपि आप सर्वथा समदृष्टि दयावान और सच्चे सज्जन, निज धर्महितैषी हैं, स्वयम् ही आपकी हमारे जैनी भाइयों तथा अन्य मतियोंपर भी बड़ी कृपा रहती है, तौभी हम लोग अपने हृदयकी दुर्बलता से सदैव जैनसमाजपर केवल अधिक कृपा कटाक्ष रखनेकी प्रार्थना करते हैं। आशा है कि आप हम लोगोंकी दृढ़तापर क्षमा करेंगे । और सविनय निवेदन है कि यह मानपत्र जो आपकी सेवा में अर्पण करते हैं इसे आप सादर सहर्ष स्वीकार करके हम लोगोंको अनुगृहीत करेंगे किमधिकम् ।
वीर संवत् २४३३ मिती चैत्र सुदी १३ तारीख २७ मार्च सन् १९०७ ईसवी
आपके कृपाभिलाषी प्रेमी समस्त आगरा निवासी जैन भाइयोंकी ओरसे
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दलीपसिंह
अग्रवाल जैन - उपमन्त्री ।
फिर शीतलप्रसादजीने धार्मिक शिक्षाकी महिमा बताते हुए आगरा में जैन बोर्डिङ्गकी कितनी आवश्यक्ता है इसको दिखाते हुए जो बातचीत दिनमें कालेज के छात्रों से हुई थी उसका भाव कहा, जिसको सुन कर सभा के चित्त भर आए । इसका समर्थन डाक्टम दलीपसिंह अग्रवालने किया ।
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