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महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५१३ other forbidden things on the hill is totally against Jain views, hence such proposal should entirely be dropped.”
भावार्थ-बम्बईका दि. जैन संघ पहाड़पर मकानोंके लिये युरुपियन आदिको पट्टे जमीन देनेके विरुद्ध है, क्योंकि इससे सर्व जैन जातिको महान असंतोष होगा । पूर्ण पर्वत पवित्र है। मांस मदिरा व अन्य निषेध्य पदार्थ पर्वतपर ले जाना जैनधर्मसे विरुद्ध है, कोई काम जैनियोंके परिणामोंको दुःखी करनेवाला न होना चाहिये इससे इस विचारको बिलकुल छोड देना चाहिये । यह सभामें प्रगट हुआ कि डिप्टी कमिश्नरके पास चारों ओरसे तार व अर्नियोंकी वर्षा हो रही है। कलकत्ता, शोलापुर, सुरत, भावनगर, अहमदाबाद, इन्दौर, मद्रास आदि प्रसिद्ध २ स्थानोंसे तार पहुंच गए हैं। इसनेहीमें डिप्टी कमिश्नर हजारीबागका दूसरा नोटिस ता०
२९ अप्रैल १९०७का आया कि हम ऐसी डिप्टी कमिश्नरका कोई बात नहीं कर सक्ते जिससे पर्वतके मालिकदूसरा नोटिस । को हानि पहुंचे । जैनियोंका सिवाय मंदिरोंके
पर्वतपर कोई हक नहीं है । यदि अधिक हक मांगा जायगा तो पट्टे देते हुए कोई भी शर्त जैनियोंके लाभकी नहीं रख सकेंगे। यदि अदालती कार्रवाई न हो तो डि० क० पर्वतपर जैनियोंकी पूजामें हानि न पहुंचे इस बातका पट्टा देते समय स्मरण रखनेकी आशा कर सक्ते हैं । इस नोटिसको पढ़कर सेठमी व अन्य भाई बहुत ही हताश हुए। कमेटीके महामंत्रीकी तरफसे ता० १० मईकी दस्तखती सूचना जैनमित्र ता० १४ मई १९०७ में प्रगट
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