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५१०] अध्याय ग्यारहवां । जो सर्कारी कन्याशालामें पढ़ा चुका था तथा मईमें महूर्त किया जाय ऐसा निश्चय कर आप बम्बई आ गए। इतने ही में फलटन स्थानमें मिती चैत्र सुदी ९से बिम्ब प्रतिष्ठा
थी तथा बम्बई प्रान्तिक सभा और दक्षिण फलटनमें बिम्ब प्रतिष्ठा महा० जैनसभाका नैमित्तिक अधिवेशन था। और मानपत्र । सभापति सेठ हीराचंद नेमचंदनी नियत हुए
थे। यह सेठजीके मित्र थे तथा सेठजी दोनों सभाओंके सभापति थे इसके सिवाय भी फलटनसे खास सम्बन्ध था इसलिये सेठनी फलटन जानेका विचार करने लगे । यह प्रतिष्ठा सेट वस्ताराम पूनारामकी ओरसे हुई थी जो मरते समय १००००) पंचोंके आधीन कर गए थे। सभाका अधिवेशन चैत्र सुदी ११ से शुरू हो गया था पर श्रीमान् सेठजी चैत्र सुदी १२को शीतलप्रसादजीके साथ पहुंचे । आपके स्वागतार्थ वस्तीके बाहर सैकड़ों जैनी पहुंच गए थे। मुख्य २ भाई मिले फिर फलटनबालोंने फूलोंकी माला गले में डाली। सेठजी सेठ हीराचंद नेमचंदके साथ गाड़ी में बैठे । दि० जैन प्रान्तिक और द० म० जैन सभाके वालन्टियरोंने घोड़ोंको गाड़ीसे हटाकर स्वयं गाड़ी खींचना शुरू किया। सेठनीको यह बात पसंद न आई। आप गाड़ीसे उतरने लगे तब वालन्टियरोंने उतरने न दिया और गाड़ीको स्वयं खींचते हुए धीरे २ बैंड बाजेके साथ ५०० से ऊपर भीड़के मध्यमें सभामंडपमें लाए। उच्चासनपर बिराजमान कराके स्वागतकारिणी सभाके सभापति सेठ रामचंद हेमचंद म्हसवड़ने स्वागतका भाषण किया जिसका समर्थन बलवंत बाबाजी बुक्टे सम्पादक " जिनविजय" ने किया और कहा कि आज आपने जिस व्यक्तिका इतना आदर किया
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