________________
समाजकी सच्ची सेवा । [३४५ समामें ७ वा प्रस्ताव सेठ माणिकचंदजीने उपस्थित किया कि बालविवाह, वृद्धविवाह और कन्याविक्रयका रिवाज बन्द किया जावे।
इस जल्से में एक दिन सेठ प्रेमचंद मोतीचंदने जिनवाणीके उद्धारके लिये बहुत ज़ोरदार भाषण दिया था। सभामें विद्यालयके ध्रुवभंडारके लिये १२०००) के अनुमान चन्दा हो गया । इसमें सेठ माणिकचंद पानाचंदने १००१) दिये थे ।। गु० सं० १९९७ के अंतका सर्व हिमाच तय्यार हो गया ।
सेठ माणिकचंदने अपना परिग्रहप्रमाण व्रत सेठजीका व्यापारसे पूर्ण होता हुआ जान सेठ पानाचंद और पृथक् होना। नवलचंद तथा प्रेमचंदको बिठाकर कहा कि
हम अब दूकानमें शामिल नहीं रह सक्ते, क्योंकि हमारा नियम अब हमें साथमें व्यापार नहीं करने देता है। भाइयोंको सेठ माणिकचंदके नियमका हाल नहीं मालूम था । सब बड़े आश्चर्यमें पड़े कि अति परिश्रमी सेठ माणिकचंद जिनके द्वारा .ज्यापार दिनपर दिन उन्नतिपर है इस तरह क्यों सम्बन्ध छोड़ते हैं। इनको समझाया भी पर इन्होंने तो अब पेन्शन लेनी विचारी थी। अपनेको समाजसेवाके लिये बलि देना था, परोपकारार्थ तन मन धन लगाकर स्वहित करना था। इसी बातपर जोर दिया कि हमारा भाग अलग कर दिया जाय । तब पानाचंदनीने खूब विचार करके जो ज़मीन व मकानोंकी स्थावर मिलकियत थी, उसको बांट दिया। सेठ माणिकचंदके भागमें प्रसिद्ध जुबिलीबागके सिवाय कई और मकान भी आए । जवाहरातकी कीमत जोड़कर विभाग किया गया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org