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महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ३९९ दिये । शामको दफ्तरसे आ भोजन करके खबर भिजवानेपर श्रीमती मगनबाईजी मिली तब इन्होंने बाबू अजितप्रसाद वकीलका पता पूछा व मिलनेकी इच्छा प्रगट की । सेठजीने सब नोट करा दिया था कि अमुक नगर में अमुकर से मिलना । शीतलप्रसाद इनको ब इनकी पुत्री केशरमतीको एक मनुष्य के साथ बाबू अजितप्रसादजी के मकान पर ले गये । उस समय जिस ढंगसे बाईजीने वातचीत की उससे मालूम होता था कि इनको दुनियांका, सभा सोसायटी आदिका अच्छा अनुभव है। दो दिनतक दोर बड़ी धर्म चर्चा करनेसे व प्रश्नोत्तर करनेसे दोनों बहनोंको धर्मका अधिक लाभ मालूम हुआ । इनको शीतलप्रसादजीने स्त्रीशिक्षा प्रचारार्थ उत्तेजित किया और प्रेरित किया कि जैनगजट में मुद्रित करानेको लेख भेजे तो शुद्ध करके छपादिये जायेंगे । बाइयोंने स्वीकार किया ।
मालवा के प्रसिद्ध, प्राचीन नगर में नएपुराके मंदिरका जीर्णोद्धार कराकर विम्वप्रतिष्ठाका पंचकल्याणकोत्सव उज्जैनकी विम्व इन्दौर के सेठ तिलोकचंद कल्याणमलजीने चैत्र तिष्ठा और सेठजी सुदी ९ से १३ सं० १९६१ तक कराया
का समागम । था । १६००० के अनुमान जैनी भिन्नर प्रान्तोंके एकत्रित थे | अजमेर के सेठ नेमीचंदजी, पाटनके विनोदीराम बालचंद, लश्करके राजा फूलचंद आए थे । बम्बइसे सेठ माणिकचंदजी सकुटुम्ब व श्रीमती मगनबाई सहित पधारे थे । साथमें पालीतानाके मुनीम धरमचंद हरजीवनदास व अंकलेश्वरकी ललिताबाई भी थी । प्रतिष्ठाकारक पंडित बापूलालजी रतलाम और पं० नरसिंहदासजी थे। त्यागी दौलतरामजी, अनंरात
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