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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४०१ गोमट्टसारको अच्छा समझती थीं तथा जिनका चारित्र बहुत उज्वल था ), मगनबाई, ललिताबाई, हंगामीबाई आदि विदुषी स्त्री मंडलीने ५५ कन्याओंकी परीक्षा ली । सर्व बालक बालिकाओंको यथोचित इनाम दिया गया। एक दिन सेठ माणिकचन्दजी दुपहरको अपने बड़े डेरेमें बैठे हुए थे, वहांपर सेठ अमरचंदजी शीतलप्रसादजी व धर्मचन्दनी थे । शीतलप्रसादनी उस समय सेठ माणिकचन्दजीसे खुले दिलसे बात नहीं कर सकते थे, केवल माणिकचन्दनीको बड़े धर्मात्मा सेठ जानकर उनकी बातें सुननेको दूर बैठे थे । मगनबाईजी भी थी, जो सेठ अमरचन्द बड़नगरवालोंसे कुछ धर्मचर्चाके प्रश्न कर रही थीं ( यह अमरचन्दनी अब गृहवास छोड़कर उदासीनाश्रममें शांतताके साथ धर्मसेवन कर रहे हैं )। उस समय वागड़ देशके ५०-६० भाई सेठजीके सामने आकर बैठ गए। ये हमड़ जातिके थे। ये लोग बड़े ही दीन वचनोंसे कहने लगे कि हमारे वागड़ प्रान्तमें धर्मका विच्छेद हो रहा है, कोई सम्बोधने नहीं आता है और न कोई पाठशाला ही है। आप दया करके वहां पधारे और अपने जाति भाइयोंका उद्धार करें । सेठ माणिकचंदनीने बड़े ही वात्सल्यभावसे उनसे वार्तालाप की, वहांका सब हाल पूछा और उपदेश दिया कि आप लोग कन्याविक्रय न करें, न वालविवाह वृद्धविवाह करें, स्नानादि करने में विवेक रक्खें, शास्त्रको पढ़ा करें व बालकोंके पढ़ानेके लिये पाठशालाएँ खुलवावें, उसके लिये थोड़ी बहुत मदद हम भी देवेंगे इत्यादि आश्वासन दिया और यह भी कहा कि हम शीघ्र ही कोई उपदेशक आपके प्रान्तमें भेजेंगे। इतने बड़े धनाढ्य सेठकी इतने प्रेमके साथ
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