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अध्याय दशवां ।
५०) का सुवर्ण पदक दिये जानेका हर्ष प्रगट किया । अध्यापिकाओंकी तय्यारीके लिये ४०) मासिक व १४०) नकदका फंड हो गया । सेठ हीराचंद नेमचंदने जेलमें जैनियोंका खाता जुदा रहे ऐसी प्रार्थना सर्कारसे किये जानेका प्रस्ताव किया। बादशाह एडवर्डको धन्यवादके बाद राजकुमार प्रिन्स आफ वेल्स, जो भारतकी सेर कर रहे थे उनको वधाईका तार लखनऊ दिया गया।
ता० २७ दिसम्बरको पहले प्रोफेसर जियाराम एम० ए० के सभापतित्वमें अनाथालय हिसारने अपील करके ३०००) का चंदा एकत्र किया, फिर महासभा का कार्य हुआ। सभापति सेठजीने अपना हिन्दीमें व्याख्यान खूब समझाके सुनाया। इसमें तीर्थक्षेत्र कमेटीसे शिखरजी आदि तीर्थों का कैसा सुधारा हुआ है व आगामी होगा इसके लाभ बताए, महाविद्यालयके लिये जैपुर स्थान ठीक बताया और कहा कि यहां पंडित टोडरमल, जयचंद आदि बड़े विद्वान् परोपकारी हो गये हैं तथा आन पं० अर्जुनलाल सेठी पी० ए० हैं, जिन्होंने २००) मासिककी आमद छोड़कर महाविद्यालयकी सेवामें अपना जीवन समर्पण कर दिया है। एकताको रखने और धर्मप्रचार निमित्त रुपयोंका बृहत् कोप करनेकी प्रेरणा भी की। महामंत्री डिप्टी चम्पतरायने दशम वर्षकी रिपोर्ट व हिसाब सुनाया । मुंशी बाबूलाल एम० ए० एल एल० बी० मुरादाबादने डेपुटेशन पार्टी की रिपोर्ट पढ़ी । दिगम्बर जैन सभा भावनगर और बाबू देवकुमार आराके सहानुभूति सूचक तार पड़े गए । ता० २८ की बैठकमें प्रस्ताव हुए। जैन कालेनके लिये १०००) नगद व ३०००) से अधिक वादे हुए। ता०
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