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महती जातिसेवा प्रथम भाग। [४६७ छेवटे हमो हमारा अंत:करणथी एवं इच्छीए छीए के आप आ पदवी लांबो वखत भोगवी एथी वधारे सारी पदवीओ मेळववाने तथा भारतवर्षनी सर्वे जैन जातिनो तथा बीना भाईओनो उपकार करवाने भाग्यशाळी थाओ.. सूरत ता. २९ मे सने १९०६
ली० कालीदास वखतचंद सुरतना जैन दिगंबरी पांच गोटना शेठ
उस समय सेठनीने अपनी तुच्छता प्रगट करते हुए कहा कि नवापुरामें मेरी पुत्री फुलकुंवरके नामसे कन्याशाला खुले उसके लिये मैं ५०००) रु० अलग करता हूं। उस समय समाने आपको बहुत २ धन्यवाद दिया। ता० १९ जुलाई १९०५ को हीराचंद गुमाननी जन बोर्डिगके
छात्रोंने कार्ड बंटवाकर एक भव्य मिलावड़ा बम्बई बोर्डिगमें सभा सेठ माणिकचंदनीके सम्मानार्थ महेश्री व सेठजीको लखमशी हीरजी बी० ए० एल एल० बी० मानपत्र । के सभापतित्वमें किया और कई व्याख्यानोंमें
छात्रोंने व सभापतिने वे अपूर्व लाभ वर्णन किये जो सेठजी द्वारा स्थापित बोर्डिंगसे दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी सर्व ही जैन छात्रोंको मिलते हैं और एक बहुत सुन्दर छपा हुआ मानपत्र चांदीके कास्केटमें अर्पण किया गया जिसकी नकल पृष्ठ ४४२ पर दी गई है।
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