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४८८ ] अध्याय दशवां । प्रौढ़ और मनोहर हिन्दी भाषामें था । एसो० में मुख्य दो प्रस्ताव हुए । एक तो मेम्बरों में दर्शन स्वाध्यायके प्रचारकी कोशिश की जावे और उसकी रिपोर्ट हर साल प्रगट हो। दूसरे एक ट्रैक्ट कमेटी इंग्रेजी पुस्तकोंके बनाने व संशोधनके लिये बने । महासभामें मुंशी चम्पतरायजीने रिपोर्ट सुनाई, फिर सेठ माणिकचंदजीने प्रस्ताव किया कि महासभा दिगम्बर जैन डाइरेक्टरी तय्यार करै उसका कुल खर्च मैं दूंगा। महासभाने धन्यवाद सहित स्वीकार किया व बाबू सूरजभान वकीलको इसका मंत्री नियत किया । यद्यपि इसका काम सेठ ठाकुरदास भगवानदासने पहले ही शुरू कर दिया था पर घूमनेवाले डाइरेक्टर न मिलने व व्यापारमें सल्लग्न होनेके लिये वह काम कुछ हुवा न था तथा बाबू सूरजभानसे प्राइवेट बात करनेपर सेठनीको यह मालूम हुआ था कि इनके द्वारा यह काम बहुत जल्द और बहुत अच्छी तरह होगा। श्रीमती मगनबाईजीको वह स्वर्णपदक जो सहारन
पुरमें देना प्रस्तावित हुआ था महासभाकी मगनबाईजीको खास बैठकके समय सभाके सामने बुलाकर दिया स्वर्ण पदक । गया और इनकी सुकीर्ति वर्णन की गई।
श्रीमती मगनबाईजीको परदेकी आदत न थी और न उन्हें पुरुषोंकी सभाके सन्मुख आते संकोच था। आपने स्वर्णपदक लेते हुए अपनी मिष्ट ध्वनिसे श्री जिनेन्द्रको नमस्कार करके अपनी लघुता प्रगट करते हुए महासभा द्वारा सम्मानित होने पर अपना अति हर्ष माना और धन्यवाद दिया। सभाओंकी
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