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अध्याय ग्यारहवां
किया जाय । लाहौर के निमित्त पहले बाबू चंदूलाल ओवरसियर से, फिर बाबू रामलालजीसे, आगराके निमित्त लाला गोपीनाथनी बजाज और बाबू देवीप्रसादजीसे; प्रयागके लिये बाबू ऋामदास, बच्चूलाल शिवचरणलाल आदिसे पत्रव्यवहार होने लगा । शिखरजी की बीसपंथी कोठी सम्बन्धी पत्रव्यवहार प्रायः सेठजी ही को करना पड़ता था । मैनेजर डाह्याभाई शिवलाल हरएक काममें सेठजीकी सम्मति मांगता व आज्ञा लेता था और सेउनी तुर्त जवाब देकर उसका
समाधान करते है ।
सिद्धक्षेत्र श्री गजपंथाजीपर मिती माघ सुदी १३ सं० १९६३ से १५ तारीख २७-२८ - २९. गजपंथाजीपर बम्बई जनवरीको बम्बई प्रान्तिक सभाका चतुर्थ प्रा० सभाका अधि- वार्षिक उत्सव होनेवाला था । इस उत्सवका वेशन | सब प्रबन्ध बंट चुका था । मंडप तथा केम्पका प्रवन्ध सेठ माणिकचंदजी के
सुपुर्द किया गया था इससे शीघ्र ही सेठजीको वहां जानेकी फिकर पड़ी । श्री गजपंथ पर्वत बम्बई प्रान्तके नासिक स्टेशनसे १० मील व नासिक शहर से ५ मील है, पासमें मसरूल ग्राम है । यह दिगम्बर जैनियोंका प्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र है । यहांसे सात बलभद्र और आठ क्रोड़
मुनीश्वरोंने मोक्ष प्राप्त की है ।
पर्वत ४०० फुट ऊंचा है। सीढ़ियां ३२५ बनी हैं। ऊपर दो प्राचीन गुफाओं में खुदे जिन मंदिर हैं जिनमें पर्वत में उकेरी अति प्राचीन दि० जैन प्रतिबिम्ब हैं। दो चरणादुकाएं हैं। एक बड़ी मूर्ति पार्श्वनाथ स्वामीकी कुछ २ खंडित है । ऊपर व नीचे जलके
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