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अध्याय दशवीं ।
नाम भरा लिये । लाला कुंजीलाल, बनारसीदाप्स, और बाबू छेदीलालजीसे तो कलकत्तेमें ही भरा लिये थे, अब बाबू हनुमानदास, बाबू नंदनजी तथा लाला खड़गसैन उदयराजजीसे भराए । खड़गसैनजीकी दो विधवा स्त्रिये थीं। इनको समझाने में मुख्य परिश्रम श्रीमती मगनबाईजीने किया था। यहां तक १४ नाम हो गये थे और सेठ नेमीचंदजीसे १५वें नामकी शर्त थी । एक नाम आपने अपना और भरके १५. नाम पूरे कर दिये और रुपया तहसीलना शुरू करा दिया । साहस इसीको कहते हैं। यदि एक और धनाढ्य उनके साथ भ्रमण करनेमें पूरी २ मदद देता, और सेठजी १० व २० शहरों में घूम लेते तो १०० नाम भराना कोई बात न थी पर जैन जातिके दुर्भाग्यसे ऐसा न हो सका और वह फंड २३०००) ही पर रुक रहा है।
ता० ७ जनवरीको स्याद्वाद पाठशालाकी प्रबन्धकारिणी सभामें आप सभापति हुए । कई जरूरी प्रबन्धक कार्रवाइयों के साथ साथ वार्षिक अधिवेशन आगामी फाल्गुण सुदीमें करना निश्चित किया। जिस पाठशालाके लिये सेठनीको इतना प्रेम था उसकी
जांच भी कराना आप जानते थे जिससे पंडित शिवकुमार खातरी हो कि पाठशालाका काम ठीक होता शास्त्री द्वारा है या नहीं। आप एक दिन कई विद्यार्थिपरीक्षा । योंको लेकर काशीके प्रसिद्ध विद्वान् पंडित
शिवकुमार शास्त्रीके यहां पधारे और प्रार्थना की कि आप इनकी परीक्षा लेवें । पंडितवर्यने परीक्षा लेकर यह सम्मति प्रदान की
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