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अध्याय दशवां । स्टेशनपर बहुत ही सत्कारके साथ स्वागत किया। वहांसे भातकुली गए । अमरावतीसे देशभक्त गणेश कृष्ण खापर्डे वी० ए० एल० एल० बी० व डाक्टर मुंजे व रा० रा० दुरानी वकील भी सभाद्वारा निमंत्रित हो भातकुली पधारे और सेठजीके निकट ही ठहरे । खापर्डे महाशय बड़े ही निरभिमानी व परोपकारी हैं। जैनियोंको उपदेश करनेके लिये आपने इतनी दूर आनेका महान कष्ट उठाया था। अधिवेशनमें शरीक होने के लिये नागपुरसे गुलाबप्साहजी, एलिचपुरसे सेठ नत्थूमाह, अंजनगांवसे सिंहई एसुसिंहई सोनासिंहई, पारोलासे सेठ पीताम्बरदास आदि ५००० स्त्री पुरुष एकत्र हुए थे।
कार्तिक वदी ५ वीर सं० २४३३ ता० ६ नवम्बर १९०६ को सभाका प्रथम अधिवेशन हुआ । माननीय खापर्डे 'आदि सर्व उपस्थित हुए । सभा खचाखच मनुष्योंसे भरी हुई थी। सेठजीने सभापतिका आसन एक भारी आनन्द ध्वनिके मध्य ग्रहण करके अपना छपा हुआ भाषण स्वयं खड़े हो बड़ी ही गंभीरता और शांतिसे पढ़ा । इसमेंकी कुछ उपयोगी बातें यहां दी जाती हैं-"जैन जाति घोर निद्रामें सोई पड़ी है उसके उठानेका प्रयत्न सभा ही है। बम्बई प्रान्तिक सभाने इसीके द्वारा बहुत कुछ उन्नति में कदम बढ़ाया है तथा इस बरार सभाके मुख्य संस्थापक सेठ गुलाबसिंहजीने ५००००) .. अलग निकालकर एक कमिटीके आधीन कर दिया है जिसके व्याजसे ६२॥ टका तीर्थोके सुधार व ३७॥ टका विद्योत्तेननमें खर्च हो ऐमा नियम किया है। नागपुर में जैन पाठशाला है तथा बोर्डिंग भी खुला है । सभाको शिक्षाकी ओर विशेष ध्यान देना चाहिये । जैसे विना जड़के वृक्ष नहीं ठहर सक्ते ऐसे विना शिक्षा
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