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महती जातिसेवा प्रथम भाग [४८३ २ मील सड़क बहुत ही खराब है सो एलिचपुर आकर लालासा मोतीसाके वहां ठहरे और इन दो कामोंके लिये कहा तथा हिसाबादि तीर्थक्षेत्र कमेटीके दफ्तरमें बराबर भेजे जानेकी प्रेरणा की।
यहांसे अमरावती आकर नागपुर आए । सेठ गुलाबसाहनीके वहां १ दिन' ठहरे । उनको ५००००) का ट्रष्ट रजिष्टरी करनेके लिये मसौदा लिखाया। वहांसे रामटेक यात्रा करने गए । नागपुरसे २४ मील रामटेक है । एक छोटी लाइन गई है।
यहां श्री शांतिनाथ स्वामीकी दिगम्बर जैन रामटेककी यात्रा। खड़गासन मूर्ति १५ फुट ऊंची अतिशय
मनोज्ञ है। चौथे कालकी मालूम होती है। यहांकी यात्रा करके सर्व लोग बम्बई आए।। जैन जातिमें कितना अज्ञान, व्यर्थ व्यय व कुरीतिका प्रचार
है इस बातको अपनी इधर उधरकी यात्रासे सेठ माणिकचंदजी- व चौपाटीपर दर्शन करने आनेवाले भिन्न २ की धर्मप्रचारकी देशोंके यात्रियोंसे मालूम करके तथा यह चिंता । भी शिकायत मालूम करके कि कोई उपदेशक
आता जाता नहीं है तथा उपदेशकोंका दि० जैन समाजमें अभाव देखकर इसकी पूर्ति कैसे हो इसका उपाय सोचते रहते व शीतलप्रसादजीसे पूछते रहते थे। शीतलप्रसादजीने एक दिन यह सलाह दी कि उपदेशकीय परीक्षा कायम की जावे । उसका पठनक्रम नियत किया जावे तथा इनाम दिया जाय । सेटजीने इस बातको स्वीकार किया, तब शीतलप्रसादनीने एक पठनक्रम व नियमायली बना दी जिसे सेठजीने बाबू सुरजभान वकीलको
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